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________________ जैन श्रमण संघ का इतिहास So AIRAGNIHIRAGIRIDIEA DOTipdi mDAIINDI |D THI1111D CITI INDIRAHDAII IID-DIS HAD D ID SINHIND DIHD अन्यग्रन्थ-कर्म प्रकृति टीका, कर्मप्रकृति लघुः चमत्कार पूर्ण काव्य कृति है । कान्य के अतिरिक्त चंद्रवृत्ति, तिङन्तान्वयोक्ति, अलंकार चूडामणि टीका, प्रभा व्याकरण, कथा चरित्र ज्योतिष के मेघमहोदय, काव्यप्रकाश टीका छन्दश्चूडामणि शठप्रकरण ऐन्द- रमल शास्त्र, हस्तसंजीवन टीका सहित, मंत्रतत्र, स्तुति चतुर्विशतिका, स्तोत्रावलि, शंखेश्वर पार्श्वनाथ अध्यात्म और स्तोत्र आदि अनेक ग्रंथों का निर्माण स्तोत्र, समीका पार्श्वनाथ स्तोत्र, आदि जिनस्तवन, किया। विजयप्रभसरि स्वाध्याय और गोडी, पार्श्वनाथ इनके बाद यशस्वत् सागर लक्ष्मीवल्लभ, श्रादि स्तोत्रादि। अनेक साहित्य लेखक हुए। उन्नीसवी शताब्दी में उपयुक्त विशाल प्रथराशि को देखने से ही मयाचन्द, पद्मविजयगणि, समाकल्याण-उपाध्याय, प्रतीत हो जाता है कि उपाध्याय यशोविजयजी कितने बीसवीं शताब्दी में विजयराजेन्दसरि और न्यायप्रौढ़ विद्वान थे। ये अनुपम विद्वान, प्रखर न्यायवेत्ता, यिजय जी जैसे महा विद्वान् साहित्यिक हुए । योगवेत्ता; अध्यात्मयोगी, और महासुधारक उन्नीसवीं, बीसवीं शताब्दी में संस्कृत-प्राकृत साहित्य थे। इनका स्वर्गवास १७४३ में हुआ । ये जैनसाहित्य सृजन की गति मंद हो गई और हिंदी, गुजराती के इतिहास में प्रथमकोटि के साहित्यकारों में रखे आदि भाषाओं में विशेष रूप से साहित्य-सृष्टि हुई। जाने योग्य साहित्यसेवी हुए हैं। गुजराती और हिंदी भाषा के साहित्य विकास में विनयविजय उपाध्याय तथा मेघविजय उपाध्याय उन्नीसवी बीसवी सदी के जैनमुनियों का मुख्य ये यशोविजयजी के समकालीन हुए हैं। इन्होंने रूप से योग रहा है। आगमिक, दार्शनिक व्याकरण, काव्य और स्तुति चिदानंद जी कवि रायचन्द, विजयानदसरि, सम्बंधी अनेक प्रथों का निर्माण किया। श्री मेघवि. वीरचन्द गांधी, आत्माराम जी म, शतावधानी जय उपाध्याय व्याकरण, न्याय साहित्य के अतिरिक्त रत्नचंद जी म० आदि २ मिद्ध विद्वान और लेखक आध्यात्मिक और ज्योतिर्विद्या में भी प्रवीण थे इन्होंने हुए हैं। महाकवि माघ के माघकाव्य के प्रत्येक श्लोक का जैनाचार्य श्री विजयानन्दसरि जी अंतिम पद लेकर शेष तीन पदों की विषयवद्ध रचना करके देवानंदाभ्युदय महाकाव्य की रचना की। इसी (प्रसिद्ध नाम-आत्मारामजी महाराज ) तरह नैषध के प्रतिश्लाक का एक चरण लेकर शांति- भारत के प्रायः सभी नागरिक गुरूदेव श्री. नाथ चरित्र काव्य की रचना की। सबसे अधिक मद्विजयानन्दमूरि जी के नाम से परिचित हैं, उनकी चमत्कृति पूर्ण इनका सप्तसंधान महाकाव्य है। गणना १६ वीं शताब्दी के 'भारतीय सुधार' के इसका प्रत्येक श्लोक ऋषभदेव, शांतिनाथ, नेमिनाथ, प्रणेता गुरुओं एवं नेताओं में होती है। राष्ट्रभाषा पार्जनाथ, महावीर, रामचंद्र और कृष्ण इन सात के रूप में हिन्दी को सब से पहले अपनाने वाले महापुरुषों का समान रूप से लागू होता है । कितनी यही महातुरुष थे। अपनी अल्प भायु में हो उन्होंने Shree Sudhammaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034877
Book TitleJain Shraman Sangh ka Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManmal Jain
PublisherJain Sahitya Mandir
Publication Year1959
Total Pages222
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size133 MB
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