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________________ महाप्रभाविक जैनाचाय ANUNGIN THE QUI CUM QUAN दिवाकर के सन्मति तर्फे पर पच्चीस हजार श्लोक प्रमाण बाद महाराव नाम से विस्तृत टीका लिखी है । इसे इससे पूर्णवर्ती सकल दार्शनिक ग्रन्थों का संदो इन कह सकते हैं। इन आचार्य का समय १०५४ से पूर्व ही सिद्ध होता है। प्रभाचन्द्र: --- आपने प्रमाण शास्त्र पर सर्वश्रेष्ठ ग्रन्थ 'पमेयकमलमा एड' लिखा। ये दिगबर परम्परा के आचार्य हुए हैं । आपने आचार्य अकलंक की कृतियों का दोहन करके व्यवस्थित पद्धति से इस प्रौढ दाश निक प्रन्थ की रचना की। उन्होंने न्यायकुमुदचन्द नामक टीका लघीयस्त्रय ग्रन्थ पर लिखी है । शान्ति सूरि :- ये पाटन धनपाल की प्रेरणा से धारा नगर में आये थे । राजा भोज ने इनका सत्कार किया था। उसको सभा के पण्डितों को जीतने से भांज ने इन्हे 'वादिवेताल' का उपाधि दी थी। इन्होंने उत्तराध्ययन सूत्र पर सुन्दर टोका लिखी जा 'पाइ अटोका' के नाम से प्रसिद्ध है । जिनेश्वर---ये वर्धमानसार के शिष्य थे। में दुर्लभ राजा के समय में चेत्यवासियों का जार था। जिनश्वरसूरि ने राजा के सरस्वता भण्डार से दशवेकालिकसूत्र निकाल कर उसे बताया कि खाधु का सच्चा आचार यह है; चैत्यवासियां का आचार शास्त्रानुकूल नही है । राजा नं 'खरतर' ( कठार आचारपालन वाल) का उपाधि उन्हें प्रदान का | तब से खरतरगच्छ को स्थापना हुई । नवांगी वृतिकार अभयदेव -- उक्त जिनेश्वरसूरी के शिष्य अभयदेवसूरी और जिनचन्द्रसूरो हुए इन अभयदेय सरी ने श्राचारांग और सत्रकतांग को पाटन Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat દ छोड़कर शेष नौअंग सूत्रों पर संस्कृतभाषा में टीका जिखी । चन्द्रप्रभसूरी : — इन्होंने पौमिक गच्छ की सं० १५४६ में स्थापना की । दर्शनशुद्धि और प्रमेय रत्नकोश नामक ग्रन्थ रचे । जिनदत्तमूरो-ये जिनवल्लभ सूरी के शिष्य और पट्टधर थे। इन्होंने अनेक क्षत्रियों का प्रतिबोध देकर जैनधर्मानुयायी बनाये । ये खरतरगच्छ के प्रभावक आचार्य हुए। ये “दादा गुरु" के नाम से विशेष प्रसिद्ध है । श्रजमेर में इनका स्वर्गवास हुआ। स्थानीय दादावाड़ी इन्हीं का स्मारक है। इनके बनाये हुए ग्रन्थ इस प्रकार हैं - गणधर सार्धशतक, गणधर समति, कालस्वरूप कुलक, बिशिका, चर्चरी, सन्देहदोलावलि, सुगुरुवारतन्त्र्य, स्वार्थाधिष्ठायिस्तोत्र, विघ्नविनाशिस्तोत्र, यवस्था कुलक, चैत्यवन्दन कुलक, और उपदेशरसायन | वृहदगच्छीय हेमचन्द्रः---इन आचार्य ने नाभेयनेमि द्विसंधान काव्य की रचना की । यह ऋषभदेव और नेमिनाथ दोनों को समानरूप से लागू होता है अतः द्विसंधान काव्य कहा जाता है । मलधारीं हेमचन्द्रः -ये मलघारी अभयदेव के शिष्य थे । ये अत्यन्त प्रभावक व्याख्याता थे । सिद्धराज जयसिंह इनके व्याख्यानों को बड़े ध्यान से सुनता था । और इनकी प्रेरणा से जैनधर्म के लिए उसने कई हितकारी कार्य किये थे। इनको परारा में हुए राजशखर ने प्राकृत द्वयाश्रयवृत्ति (सं० १३८ ) में लिखा है कि ये प्रद्य ुम्न नामक राजसचित्र थे और अपनी चार स्त्रियों को छोड़ कर अभयदेव के शिष्य www.umaragyanbhandar.com
SR No.034877
Book TitleJain Shraman Sangh ka Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManmal Jain
PublisherJain Sahitya Mandir
Publication Year1959
Total Pages222
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size133 MB
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