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________________ जैन धर्म का प्राचीन इतिहास Ma>-CID Missyllpali> <l i> <limli elk!HISAPAIKRUIDACI Missol like croll rounts Ram-!ull2015 ON INSPIRATIS HINKIMOHAR किये बिना अपने अहिंसा सिद्धान्त को क्रिया शील मिली वह इसी बात से प्रकट हो जाती है कि अब व जीवित बनाने जाते हैं । अन्त में उस यज्ञ में मारे हिंसकयज्ञों की प्रथा लुप्तसी हो गई है। यह भगवान् जाने वाले पशु को प्राण से तथा मारने वाले याज्ञिक महावीर का अभूतपूर्व प्रभाव है कि जिन यज्ञों की को हिंसा वृत्ति से बचालेते हैं।" पूर्णाहुति पशुवध के बिना नहीं हो सकती थी ऐसे ___ आजके युग के महापुरुष महात्मा गांधीजी ने यज्ञ भारत में नामशेष हो गये। इस विषय में आनन्द जिन जिन साधनों का अवलम्बन लेकर भारत में शंकर बापू भाई ध्रु व लिखते हैं:सफल क्रान्ति पैदा की और आधुनिक विश्व को “ऐतरीय कहा गया है कि सर्वप्रथम पुरुषमेध विस्मय चकित किया उनका मूल श्रीत भगवान महावीर था, इसके बाद अश्वमेध और अजामेध होने लगे। के आदर्श जीवन और सिद्धान्तों में है। अहिंसा अजामेध में से अन्त में यवों से यज्ञ की समाप्ति और सत्य का सिद्धान्त, अस्पृश्यता निवारण का मानी जाने लगी। इस प्रकार धर्म शुद्ध होते गये। सिद्धान्त, नारी जागरण, सामाजिक साम्य, प्राम्यजनों महावीर स्वामी के समय में भी ऐसी ही प्रथा थी की सुधारणा, श्रमिकों का आदर आदि २ कार्यों के ऐसा उत्तराध्ययन सूत्र में आये हुए विजय घोष और लिए महात्माजी ने भगवान महावीर के सिद्धान्तों से जयघोष के संवाद से मालूम होता है। इस संवाद प्रेरणा प्राप्त की है । महात्माजी की इन शिक्षाओं का में यज्ञ का यथार्थ स्वरूप स्पष्ट किया गया है । वेद उदगम भ० महावीर की शिक्षाओं में है। का सच्चा कर्त्तव्य अग्नि होत्र है। अग्नि होत्र का __भगवान महावीर स्वयं सब प्रकार के दोषों से तत्व भी आत्म बलिदान है। इस तत्व को कश्यप अतीत हो चुके थे इसलिए उनके उपदेशों का जादू धर्म अथवा ऋषभ देव का धर्म कहा जाता है। के समान चमत्कारिक प्रभाव होता था। ब्राह्मण के लक्षण भो अहिंसा धर्म विशिष्ट दिये गये जिस व्यक्ति का अन्तः करण पवित्र होता है है। बौद्ध धर्म के प्रन्थों में भी ब्राह्मण के ऐसे ही उसके मुख से निकली हुई भावान श्रोताओं के अन्तः- लक्षण दिये हैं । गौतमबुद्ध के समय में ब्राह्माणों का करण को छू लेती है । इसके विपरीत जिस उपदेशक जीवन इसी ही तरह का होगया था। ब्राह्मणों के का आचरण अपने कहने के अनुसार नहीं होता जोवन में जो त्रुटियाँ आगई थी वे बहुत बाद में उसका प्रभाव नहीं सा होता है। आई थी और जैनों ने ब्राह्मणों की त्रुटियों को यदि हो भी जाता है तो वह क्षणिक ही होता है। सुधारने में अपना कर्त्तव्य बजाया है। यदि जैनों भगवान महावीर की वाणी में हृदय की पवित्रता ने इस त्रुटि को सुधारने का कार्य न किया होता तो का पुट था अतः उसका चमत्कारिक प्रभाव पड़ा। ब्रह्माणों को अपने हाथों पर काम करना पड़ता।" भगवान् ने जिस २ क्षेत्र में प्रवेश किया उसमें इसी तरह लोकमान्य तिलक ने भी कहा है किसफलता प्राप्त की। उनका सबसे प्रधान कार्य था जैनों के अहिंसा परमो धर्मः के पदारसिद्धान्त ने हिंसा का विरोध । इस दिशा में उन्हें जो सफलता ब्राह्मण धर्म पर चिरस्मरणीय छाप डाली है। Shree Sudhamaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034877
Book TitleJain Shraman Sangh ka Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManmal Jain
PublisherJain Sahitya Mandir
Publication Year1959
Total Pages222
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size133 MB
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