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जैन धर्म का प्राचीन इतिहास amiATH INSTITU IN SINH TIMissil Vilom IS INR ID Colk !hool In>TORY IN HINd LIt nub IN MISMIS INCi' LISeni L: जागृत करने का प्रयत्त किया। इसके लिए तत्कालीन के मार्ग में काँटे बिछाये; पर महापुरुष इन बाधाओं से धार्मिक और सामाजिक भान्त रूढ़ियों के विरुद्ध कब रुका करते है ? वे तो अपने निश्चित ध्येय की उन्होंने प्रबल आन्दोलन किया। उन्होंने स्पष्ठ शब्दों और अविराम आगे बढ़ते रहते हैं और साध्य पर में घोषित किया कि धर्म, बाह्य किया काण्डों ही के पहुँच कर ही विराम लेते हैं। पुराण पन्थियों के द्वारा नहीं किन्तु आत्मा के गुणों का विकास करने अनेक प्रयत्नों के बावजूद भी भगवान महावीर के से होता है । धर्म के नाम पर की जाने वाली याज्ञि. सचोट ओर सक्रिय उपदेशों ने जनता में क्रान्नि की कीहिंसा धर्म का कारण नहीं बल्कि घोर पाप का लहर व्याप्त कर दी। हिंसामय धर्म कृत्यों के प्रति कारण है । हिंसा से धर्म होना मानना, विष खाकर जनता में घणा के भाव पैदा हो गये और ब्राह्मण जीवित रहने के समान असम्भव कल्पना है । उन्होंने धर्म गुरुओं के एकाधिपत्य को उसने अस्वीकार हिंसक यज्ञों के विरुद्ध प्रबल क्रान्ति की। बाहण कर दिया। इस प्रकार भगवान महावीर की धर्मधर्म गुरुओं की दाम्भिकताका पर्दाफाश किया। क्रान्ति ने तत्कालीन भारत की काया पलट दी। जिस जातिवाद के याधार पर वे अपनी प्रतिष्ठा भगवान महावीर के उपदेश का सार घोड़े शब्दों बनाये हुए थे उसके विरुद्ध महावीर ने सिंहनाद में इस प्रकार दिया जा सकता है-सब जीव जीवन किया। उन्होंने जाति-पांति के भेद भाव को निमूल और सुख के अभिलाषी हैं, दुःख और मरण सब बताया। उन्होंने डंके की चोट यह उद्घोषणा की कि को अप्रिय है, सब को जीना अच्छा लगता है, जीवन मानव मात्र ही नहीं, प्राणी मात्र धर्म का अधिकारी है, जीवन सब को वल्लभ है। मरना कोई नहीं है । धर्म किसी वर्ग या व्यक्ति की पैतृक सम्पत्ति चाहता । अतएव जीवा और दूसरे को जीने दो। नहीं, वह सर्वसाधारण के लिए है । प्रत्येक प्राणी को अहिंसा की आराधना ही सच्चा धर्म है । यह धर्म धर्म के आराधन का अधिकार है। धर्म की दृष्टि में ही शुद्ध है, ध्रुव है, नित्य है, शाश्वत है और सब जाति की कोई महत्ता नहीं। मानव मानव के बीच त्रिकालदर्शी अनुभवियों के अनुभव का निचोड़ है। भिन्नता की जाति पांति को दीवार खड़ी करने (२) ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य और शुद्र ये जाति से वाले जातिशद के विरुद्ध भगवान महावीर ने प्रबल- नहीं किन्तु कम से होते हैं । जन्मगत जाति का कोई तम आन्दोलन किया। इसके फलस्वरूप अन्धविश्वासों महत्व नहीं । जन्म से ऊँची-नीच का भेद वास्तविक के दुर्ग ढह-ढह कर भूमिसात् होने लगे। ब्राह्मण नहीं मिथ्या है। धर्माचरण और शास्त्र श्रवण का गुरुओं के चिर प्रतिष्ठित सिंहासन हिल ठं। चारों सबको समान अधिकार है । ब्राह्मण वही है जो बझओर क्रान्ति का ज्वाला मुखी फूट पड़ा। प्राचीनता श्रात्मा के स्वरूप को जाने और अहिंसा धर्म का के पुजारियों ने प्रचलित परम्पराओं की रक्षा के लिए पालन करे । ( ३ ) यज्ञ का अर्थ आत्म बलिदान तनताड प्रयत्न किये, नम क्रान्ति को मिटाने के लिए है जिस में हिंसा होती है वह यज्ञ, वास्तविक यज्ञ अनेक उपायों का प्रयोग किया। महान क्रान्तिकार नहीं है । ( ४ ) आत्मा का उद्धार प्रात्मा ही अपने
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