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________________ ३० जैन श्रवण संघ का इतिहास MIMININD DIU DAININD DILD ||Dail 110 dillo DID Oil ID CUISTINATIOD IDID DAMDARMER कमठ, उस समय का एक महान् प्रतिष्ठा प्राप्त नाथ ने तत्कालीन जनता को भलीभांति दिग्दर्शन तापस था । वह वाराणसी के बाहर गंगातट पर डेरा कराया । आत्मा की साधना और मोक्ष की प्राप्ति के डाल कर पंचाग्नि तप किया करता था। इस पंचाग्नि लिए, उन्होंने चार महावतों का पालन करने का तप के कारण वह हजारों लोगों का श्रद्धाभाजन और विधान किया। वे चार महाव्रत इस प्रकार हैं:माननीय बना हुआ था। हजारों लोग उसके दर्शन (सव्याओ पाणाइवायाओवेरमणं) सब प्रकार की हिंसा के लिए जाते थे। पार्श्वनाथ भी वहाँ गये। उन्होंने से दूर रहना, (सवाओ मुसावायाोवेरमणं) सय देखा कि तापस की धूनी में जलने वाली बड़ी २ प्रकार के मिथ्याभाषण से दूर रहना, (सव्वाओ लकड़ियों में नाग और नागिनी भी जल रहे हैं। अदिएणादाणाओ वेरमणं) सब प्रकार के अदत्तादान उनका अन्तःकरण इस दृश्य को देखकर द्रवित हो से दूर रहना और (सव्वाओं बह द्वाहाणाो वेरमणं) गया। साथ ही उन्होंने इस पाखण्ड को, ढोंग को सब प्रकार के परिगृह का त्याग करना। अर्थात् आडम्बर को दूर करने का दृढ़ संकल्प कर लिया। अहिंसा, सत्य, अचौर्य और अपरिगृह की आराधना तात्कालिन प्रथा के विरुद्ध और बहुमत वाले लोकमत करने से आत्मा का सर्वांगीण विकास हो सकता है। के खिलाफ आवाज उठाना साधारण काम नहीं है अपरिगृह में ब्रह्मचर्य का भी समावेश हो जाता था इसके लिए प्रबल आरम यल की आवश्यकता होती क्योंकि उसकाल में स्त्री भी परिग्रह समझी जाती है। पार्श्वनाथ ने निर्भयता पूर्वक अपने अन्तःकरण थी। इस प्रकार पार्श्वनाथ ने चतुर्याम मय धर्म का की आवाज को उस तापस के सामने रक्खी । उसके उपदेश दिया। बाह्य क्रि' काण्डों और विवेक शून्य साथ धर्म के सम्बन्ध में गम्भीर चर्चा की और सत्य दैहिक तपस्याओं के चक्कर में फंसी हुई जनता को का वास्तविक स्वरूप जनता के सामने रखा । उन्होंने पात्मतत्व और आत्मविकास का उपदेश देकर अपने पर आने वाली जाखिम की परवाह न करले । भगवान् पीनाथ ने विश्व का महान् यल्याण किया। हुए स्पष्ट उद्घोषित किया कि ऐसा तप अधर्म है सुप्रसिद्ध बौद्ध विद्वान् श्री धर्मानन्द कौशाम्बीने जिस में निरपराध प्राणी मरते हों। पार्श्वनाथ की "भातीय संस्कृति और अहिंसा" नामक अपनी सत्यमय, ओजस्वी और युक्तियुक्त वाणी को सुनकर पुस्तक में पाीनाथ के सम्बन्ध में इस प्रकार लिखा कमठ हतप्रभ होगया । पार्श्वनाथ ने जलते हुए नाग है:नागिनी को बचाया और उन्हें सम्यक धर्म शरण के "परिक्षित के बाद जनने जय हुए और उन्होंने द्वारा सद्गति का भागी बनाया। कमठ पर पावानाथ कुरुदेश में महायज्ञ करके पैदिक धर्म का झंडा की विवेक शून्य देह दण्ड पर आत्मसाधना की लहराया । उसी समय काशी देश में पार्शी एक नवीन विजय थी। संस्कृति की आधार शिला रख रहे थे।" आत्मा का शुद्ध स्वरूप, कर्म जनित विकार और "श्री पार्श्वनाथ का धर्म सर्वाथा व्यवहा था कर्मविकार से मुक्त होने के उपायों का भगवान पार्श्व हिंसा, असत्य, अस्तेय और परिग्रह का त्याग करना, Shree Sudhammaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034877
Book TitleJain Shraman Sangh ka Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManmal Jain
PublisherJain Sahitya Mandir
Publication Year1959
Total Pages222
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size133 MB
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