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________________ १८४ जैन श्रमण संघ का इतिहास जीवन की सबसे बड़ी सफलता है। आचार्य सम्राट पाठ पाए हैं, उन सबका प्रायः इसमें संग्रह किया की महीमा, उच्चता तथा लोकप्रियता का इससे बढ़ गया है। कर क्या उदाहरण हो सकता है ? चरितनायक की अब तक ७० पुस्तकें साहित्य प्राचार्यदेव चरित्र के साक्षात् आराधक रहे हैं। संसार में प्रकट हो चुकी हैं। जिनमें श्री उतराध्ययन जीवन को इन्होंने चरित्र की उपासना में ही अर्पित सूत्र (तीनभाग) श्री दशाश्रु तस्कन्धसत्र, श्री अनुत्तरो. किया है। आप बाल ब्रह्मचारी हैं। पपातिक दशा, श्री अनुयोगद्वार, श्री दशवैकालिक, आचार्यदेव अपने युग के उच्चकोटि के व्या- श्री तत्वार्थसूत्र, श्री अन्तकद्दशांगसूत्र, श्री आवश्यकसत्र ख्याता रहे हैं। आपकी वक्तृत्व-शक्ति में शास्त्रीय (साधु प्रतिक्रमण ), श्री आवश्यक सत्र (श्रावक प्रतिरहस्यों का विवेचन रहता है। आपके शास्त्रीय क्रमण, श्री आचारांग सूत्र, श्री स्थानांगसूत्र, तत्वार्थ प्रवचनों से प्रभावित होकर ही देहली के श्री संघ ने सूत्र-जैनागमममन्वय, जैनतत्वकलिकाविकास, जैना"जैनागमरत्नाकर" पद से सम्मानित किया था। गमों में अष्टांग योग, जैनागमों में स्याद्वाद (दोभाग), जैनागमन्यायसंग्रह, वीरत्थुई, विभक्तिसंवाद सं० १६६० में भापका चातुर्मास देहली था। जीवकर्मसम्वाद आदि प्रन्थरत्न मुख्य हैं। इन प्रन्यों उस समय सरदार वल्लभ भाई पटेल और भूलाभाई के अध्ययन से चरितनायक के आगाध पाण्डित्य का देसाई आज राष्ट्रनेता श्राप श्री के पास उपस्थित हुए परिचय प्राप्त हो सकता है। थे। सं० १९६३ में आप रावलपिंडी थे, उम समय प्राकृत भाग तथा साहित्य के विद्वान के रूप में भारत के प्रधान मन्त्री पं० नेहरू भी आपके दर्शनार्थ आचार्यसम्राट की ख्याति भारत के कोने-कोने में फैल आये थे। आपने इन्हें भगवान महावीर के आठ चकी है। पाश्चात्य विद्वान् भी प्रारकी प्राकृत-सेवाओं सन्देश सुनाये । पंजाब के भूतपूर्व प्रधान मन्त्री और में अत्यधिक प्रभावित हैं। एक बार आप लाहौर वर्तमान में आन्ध्र के गबनर श्री भीमसेन सच्चर पधारे, तब पंजाब यूनिवर्सिटी के वाइमचान्सलर आपके अनन्य भक्तों में से एक हैं। यह सब आचार्य तथा प्राकृत भाषा के विख्यात विद्वान् डॉ० ए० सी० सम्राट के प्रवचनों का ही अनुपम प्रभाव है। वल्नर से आपकी भेंट हुई। वार्तालाप प्राकृत भाषा आचार्यदेव का बौद्धिक बल तो बड़ा ही विचित्र में किया गया । डॉ० वनर ने आपको पंजाब यूनि. है। आपको शास्त्रों के इतने स्थल कंठस्थ है कि वर्सिटी की लायब्रेरी का प्रयोग करने के लिए निःशुल्क देखकर बड़ा आश्चर्य होता है। आगमों के महासागर सदस्य बनाया। में कौन मोती कहाँ पड़ा है और किस रूप में पड़ा आचार्यसम्राट् का जीवनोपवन चरित्र, धैर्य आदि है ? यह सब आपसे छिपा नहीं है । सुगन्धित पुष्पों से भरा पड़ा है, एक-एक पुष्प इतना अपूर्व और विलक्षण है कि वर्णन करते चले जायें जैनागमों में 'स्याद्वाद' (दो भाग) आपका संग्रह फिर भी उपकी पहिमा का अन्त नहीं श्राने पाता । प्रन्थ है । जैनागमों में जहाँ कहीं भी स्याद्वाद संबंधो -ज्ञानमुनि Shree Sudhammaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034877
Book TitleJain Shraman Sangh ka Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManmal Jain
PublisherJain Sahitya Mandir
Publication Year1959
Total Pages222
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size133 MB
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