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________________ १७४ जैन श्रमण संघ का इतिहास सूरीश्वरजी के कर कमलों से सं० १६६८ के वै० शु० ३ के दिन आपने भगवती दीक्षा स्वीकार की। अपनी प्रखर बुद्धिमत्ता से सन् १६४६ तक तो आपने गवर्नमेन्ट संस्कृत कालेज की शास्त्री परीक्षा पास करली । सन् ५३ में सौराष्ट्र विद्वद् परिषद् की 'संस्कृत साहित्य रत्न' की परीक्षा में सर्व प्रथम आये । आप द्वारा लिखित छोटी बडी दो दर्जन से ऊपर पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी हैं। जगद्गुरूहीर पर पांचसौ रुपयों का प्रथम पुरस्कार, जैन और बौद्ध दर्शन के निबंध पाररसौ रुपयों का द्वितीय पुरस्कार भी आपको प्राप्त हुआ है। आपकी जबान और लेखली दोनों ही चलती है, बडी विशेषता है । मुनि श्री गजेन्द्र विजयजी म० संसारी नाम हाथीभाई जन्म संवत् १६५८ महासुद १३ आजोर (मारवाड)। पिता मलूकचन्दजी माता सजूबाई । जाति व गौत्र जैन नीमा सोलंकी : दीक्षा सं. १६८७ महासुदी ५ स्थान पोकरण फलौदी । गुरु पन्यासजी श्री पद्मविजयजी गरिण। आप महान् तपस्वी आत्मा हैं। आपके वर्धमान तप की ६० वीं ओली चालू है । मुनि कल्याण विजयजी जन्म सं० १६६६ राजगढ़ मालवा जन्म नाम सुगनचन्द | पिता जड़ावचन्दजी मोदी। माता गेंदीबाई दीक्षा सियाणा (राजस्थान) मार्गशीष शुक्ला १३ गुरु श्री मद्विजय भूपेन्द्रसूरीश्वरजी म० । आपने गुरु सेवा रहकर जैनागम, व्याकरण, काव्यकोष न्यायादि साहित्य का अध्ययन किया। धार्मिक, सामाजिक कार्यों का उपदेश द्वारा प्रचार करते हैं । में मुनिराज श्री कान्तिसागरजी म० खरतरगच्छाचार्य स्वर्गीय श्री जिनहरिसागरसूरि जी महाराज के शिष्य मुनिराज श्री कान्तिसागरजी महाराज प्रसिद्ववक्ता के नाम से विख्यात हैं। आप रतनगढ़ बीकानेर के ओसवाल कुल भूषण श्री मुक्तिमलजी सिंघी के सुपुत्र हैं। बाल्यवस्था में ही गृहस्थ धर्म को छोड़कर आपने जैन दीक्षा ग्रहण करली। अपनी कुशाग्रबुद्धि और गुरु की कृपा से व्याकरण, न्याय, काव्य, कोश अलंकार तथा जैन व जैनेतर ग्रन्थों को अभ्यस्त कर बक्तृत्व शक्ति का उत्तरोत्तर विकास किया। आपकी प्रतिभाशालिनी वक्तृत्व शैली आकर्षक है । विकासोन्मुखी प्रतिभा के बलपर बड़वानी, प्रतापगढ़, अरनोद, उदयपुर आदि कई नरेशों को अपने सार गर्भित भाषणों द्वारा अनुरागी बना कर जैनधर्म के प्रति निष्ठा की जागृति की। आपके सार्वजनिक andar com
SR No.034877
Book TitleJain Shraman Sangh ka Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManmal Jain
PublisherJain Sahitya Mandir
Publication Year1959
Total Pages222
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size133 MB
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