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________________ जैन श्रमण आचार्य श्री विजय धर्म सूरिजी म० आचार्य श्री मद् विजय प्रतापसूरीश्वरजी के पट्टधर आ० विजय धर्म सूरिजी, जैन श्रमण संघ में कर्मशास्त्र तथा द्रव्यानुयोग के प्रखर विद्वान बहुत ही अल्प है, उनमें से आप एक हैं। आपकी वक्तृत्व शेली भी अनोखी है। आप श्री ने कर्मशास्त्र सम्बन्धी कुछ सुन्दर रचनाएं की हैं । आपका जन्म वढ़वारणा (सौरास्ट्र ) में सं० १६६० में हुआ। दीक्षा सं० १९७६ में तथा पन्यास पद सं० १६६२ में सिद्धक्षेत्र में । आ० श्री विजयमोहन सूरिजी के शुभ हस्त से उपाध्याय पद प्रदान किया गया तथा भायखला बम्बई में हुए भव्य उपधान महोत्सव के शुभ प्रसंग पर आचार्य पद प्रदान किया गया । आपके मुनि यशोविजयजी, जयानन्द विजयजी, कनकविजयजी सूर्योदय विजयजी आदि न्याय व्याकरण शास्त्र के विद्वान शिष्य हैं। Shree सौरभ १७१ मुनिराज श्री सिंह विमलजी गणि मूर्तिपूजक विमल गच्छ । संसारी नाम - गणेश मलजी जन्म सं० १६६७ मिंगसर सुदि ११ जन्म स्थान निपल राणी स्टेशन के पास । पिता का नामकिस्तूरचन्दजी | माता का नाग— केशरबाई जातिओसवाल श्री श्रीमाल । दीक्षास्थान विशलपुर (एरनपुरा १६६५ असाढ़ सुदि ३ गुरू आचार्य श्री हिम्मतविमल सूरीश्वरीजी । आप बड़े मधुर व्याख्यानी और जैनसमाजोन्नति के लिये विशेष लक्ष्य रखते हैं। आप श्री के उपदेशों से कई गांवों में कुसम्प मिटे हैं। कई स्थानों पर प्रतिष्ठऐं जिर्णोद्धार, उपधान, उद्यापन हुए हैं । कांठाप्रान्त में जैन धर्म का प्रबल प्रचार किया । थली और मारवाड़ आपका मुख्य विहार क्षेत्र है । www.umatanyanbhandar.com
SR No.034877
Book TitleJain Shraman Sangh ka Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManmal Jain
PublisherJain Sahitya Mandir
Publication Year1959
Total Pages222
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size133 MB
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