SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 160
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ LSO जैन श्रमण संघ का इतिहास MISCARRIDAI ISDIR INDrelum (iiDIRD ISell mpsoni li>DIn Ii>DIR ISealID IDROIL IDOID INDIm INDAININ2Im aliDeol IDxolig पूज्य श्री मोहनलालजी महाराज की परम्परा का मुनि समुदाय तपा गच्छीय मुनि । इनमें से नं० १ आनन्दमुनि ३ कांतिमुनि ४ हर्षे । मुनि ६ उद्योतमुनि और १० कमलमुनि की परम्परा तपागच्छीय क्रिया करते हैं। । इनमें से २ कांतिमुनि के नयमुनि, भक्ति, सौभाग शांति, गंभीर, कीति मुनि श्रादि शिष्य प्रशिष्य है । ___हर्ष मुनि के जयसूरि, पद्म मुनि रंग मुनि माणिक्य चन्द्रसूरि, देवमुनि, कन रुचन्दसूरि, तथा । कनकचन्द सूरि के निपुण मुनि भक्ति मनि तथा चिदानन्द मनि एवं मृगेन्द्रमुनि हैं। उद्यो मनि के कल्याण मुनि, भक्ति मुनि हीर मुनि और सुन्दर मनि आदि शिष्य प्रशिष्य हैं। कमलमनि के चिमन मुनि हैं। पूज्य श्री मोहनलालजी म० खरतर गच्छीय मुनि जैन इतिहास में पूज्य श्री मोहनलालजी म० का (१) पूज्य मोहनलालजी म. के शिष्य नं०१ व्यक्तित्व और उनका समय काल अपना विशेष जिन यशः सूरिजी ५ राजमुनिजी. ७ देवमनिजी महत्व रखता है। वे महान् श्रद्ध य लोकप्रिय पूज्य ८ हेममुनिजी तथा ६ वे गुमानमनिजी की परम्परा पुरुष हुए हैं। आपका विस्तत जीवन चरित्र "महा खरतर गच्छोय क्रिया करते हैं। प्रभाविक जैनाचाय" शिर्षक विभाग में पृष्ठ ८५ पर (२) श्री जिनयशः सूरिजी के जिनमृद्धि सूरिजी दिया गया है। पट्टधर हुए जिनके शिष्य गुलाब मुनिजी के शिष्य शिष्य परम्परा रत्नाकर मुनि तथा भानुमुनि विद्यमान है। आपके शिष्य परम्परा में तपागच्छ तथा खरतर (३) राज मुनिजी के श्री जिनरत्न सूरि स्वर्गथ गच्छ दोनों मान्यता मानने वाले अभी विद्यमान हैं पर एवं लब्धिमुनि विद्यमान है। श्री जिन रत्नसूरि के हर्ष है दोनों समुदायों में सद्भावना पूर्ण प्रेम है गणि प्रम मुनिजी, भद्रनि तथा होरमुनि शिष्य तथा तथा पूज्य श्री मोहनलालजी के प्रति दोनों में अगाध मुक्ति मुनि प्रशिष्य हैं। श्रद्धा है। दोनों अपने को उनकी परम्परा का मानने (४) श्री लब्धिमुनि के मेघमुनिजी शिष्य है। में अपना गौरव मानते हैं । (५) देवमुनिजी और उनके शिष्य मणि भामुनि पूज्य श्री के १० शिष्य थे-१ आनन्दमुनि २ जिनराशः स्वर्गस्थ है । सूरि ३ प्र० कांतिमुनि ४ पं० हर्षमुनि ५ राजमुनि (६) हेममुनिजो के शिष्य केशरमुनिजी के शिष्य ६ उद्योत मुनि ७ देवमुनि ८ हेम मुनि ६ गुमानमुनि गणि बुद्धि सागरजी विधमान हैं। आपके ३ शिष्यों १० कमल मुनि । में से साम्यानन्द व रैवत मुनि हैं।
SR No.034877
Book TitleJain Shraman Sangh ka Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManmal Jain
PublisherJain Sahitya Mandir
Publication Year1959
Total Pages222
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size133 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy