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________________ जैन इतिहास में सुप्रसिद्ध जैनाचार्य श्री श्राचार्य श्रीमद् विजय दान सूरीश्वरजी म० की मुनि-परम्परा मद् विजयानन्द सूरी श्वरजी ( आत्माराम जी) के प्रशिष्य आ श्रीमद् विजय दान सूरीश्वर जी म० भी अपने समय के एक महान् जन शासन प्रभावक आचार्य हुए हैं । आपका जीवन चरित्र 'महा प्रभाविक जैनाचार्य' विभाग में पृष्ठ ८४ पर दिया गया है । आपकी शिष्य पर जैन श्रमण-सौरभ म्परा की मुख्य विशेषता है सबका साहित्य और स्वाध्याय । प्रेम वर्तमान में आपकी परम्परा के वर्तमान मुनिराजों की संख्या २५० के करीब है और साध्वी MICRO CHINANDE 3 પૂસક Ge समुदाय भी काफी विस्तृत है । अब हम यहाँ विद्यमान आचार्यों व मुनिवरों का सक्षिप्त वर्ण करेंगे | आचार्य विजय प्रेम-सूरीश्वरजी म० आपका जन्म ७६ वर्ष पूर्व सं० १६४० कार्तिक शुक्ला १५ को पींडवाड़ा (सिरोही, में हुआ। पिता का * CREA96. X આ શ્રીલવવાના 9 પઆ શ્રી વિ પ્રેમસૂરીશ્વરજીમ ૩પ આ શ્રી વિરામચંદ્ર સો યુજીસ 77 પુઆ શ્રીવિ તમાલ સમ ૫-૫ શ્રી વિજંબૂસ થય ७. पू.आ.श्री. विभुवन सम्भः -પૂ નો વિક યા દેવતા 5 ४ રજી મહારાન - १५३ शनील शहा नाम श्री भगवानदासजी, तथा माता का नाम कंकुबाई था।' भाई थे । खंसारी नाम प्रोमचन्द था । १५ वर्ष की आयु में शत्रुंजय की यात्रार्थ जाना हुआ वहीं से मुनिवरों के संसर्ग से वैराग्य वृत्ति का बीजा रोपण हुआ । और स. १६४७ का० ० ६ को पालीताणा में ० श्री दानसूरिजी के पास दीक्षित हुए। सं० १६८१ में पन्यासपद । सं० १६६१ चैत्र सुदी १४ को राधनपुर www.umaragy andar.com
SR No.034877
Book TitleJain Shraman Sangh ka Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManmal Jain
PublisherJain Sahitya Mandir
Publication Year1959
Total Pages222
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size133 MB
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