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________________ जैन श्रमण सौरभ (परिचय विभाग ) पंजाब केसरी - युगवीर आचार्य श्रीमद् विजय वल्लभ सूरीश्वरजी महाराज का मुनि समुदाय पट्ट परम्परा श्री बुद्धि विजयजी गणी 1 -90 आ श्री विजयानन्दसूरिजी ( ७३ वाँ पाठ ) (आत्मारामजी म० ) ' श्री विजयवल्लभ सूरजो ( ७४ वाँ पाट ) आचार्य श्री की शिष्य परम्परा पंजाब केसरी युगवीर आचार्य श्री मद् विजय वल्लभ सूरीश्वरजी म० न्यायाम्भोनिधि जंनाचार्य श्रीमद् विजयानन्द सूरिजी के शिष्य श्री लक्ष्मी विजयजी के शिष्य श्री हर्ष विजयजी शिष्य थे । आचार्य श्री का जीवन चरित्र 'महाप्रभाविक जैना 'चार्य' विभाग में पृष्ठ ८६ पर दिया गया है । आप श्री द्वारा १= शिष्य प्रवर्जित हुए: - १ श्री विवेक विजयजी, २ आचार्य श्री ललित सूरिजी ३ उपाध्याय सोहन विजयजी, ४ विमल विजयजी ५ विज्ञान विजयजी ६ श्र० विद्या सूरिजी ७ विचार विजयजी विचज्ञण वि० शिव विजयजी १० Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat विशुद्ध वि० ११ पं० विकास विजयजी १२ दानं वि० १३ विक्रम वि० १४ विशारद वि० १५ विश्ववि० १६ बलवन्त वि० १७ जय वि० तथा १८ विनीत विजयजी | [१] प्रथम शिष्य श्री विवेक विजयजी के शिष्य आचार्य श्री उमंगसूरिजी विद्यमान हैं। आपके ८ शिष्य हुए जिनमें पन्यासजी श्री उदय विजयजी 'गणी' वीर विजय, धीर वि० चरण कान्त वि० तथा सुभद्र वि० विद्यमान हैं । पं० श्री उदय विजयजी के ६ शिष्यों में से ३ शिष्य विद्यमान हैं । [२] आचार्य श्री ललित सूरिजी (परिचय पृष्ठ ६० पर) के शिष्य आचार्य श्री पूर्णान द सूरिजो विद्यमान है | आपके प्रक श विजय' हेम विजय तथा ओंकार विजय नामक ३ शिष्य वर्तमान हैं । = (३) उपाध्याय श्री सोहन विजयजी के ४ शिष्य हुए-मित्रवि यजी, आचार्य श्री समुद्र सूरिजी, सागर वि० (स्वर्गस्थ ) तथा रवि विजयजी । श्राचार्य श्री मद् विजयसमुद्रसूरिजी के शिष्यों में www.umaragyanbhandar.com
SR No.034877
Book TitleJain Shraman Sangh ka Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManmal Jain
PublisherJain Sahitya Mandir
Publication Year1959
Total Pages222
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size133 MB
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