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________________ वर्तमान जैन मुने परम्परा १३५ MIDIDIDI DIDIDI |10 INDHindi 110 INDIHDISCini Tip dulkli IIIIIIIIIFAEEDINDIA वर्ष की अवस्था में मं० १६.६ भाद्र मास में लाडनू आप संत व्याकरण, काला कोप, न्याय आदि में हुआ। ३६ साधु और साध्वियां प्रवजित की। के प्रकांड पंडित हैं और प्रतिभाशाली कवि एवं ८३आचार्य श्री कालरामजी स्वामी लेखक भी हैं । आपने अपने गुरू को जीवनी पद्यबद्ध १०६ ढालों में "कालू यशोविलास" राजस्थानी भाषा आपका जन्म फागुन शुक्ला २ गं० १६३१ को में रची है। वापर में हुआ। पिता का नाम मुलचन्दजी कोठरी आप संघ संचालन में बडे प्रवीण एवं अपने धर्म और माता का नाम छोगांजी था। आपकी दीक्षा प्रचार में सफल प्रचारक सिद्ध हुए हैं। संघ एक्य को माताजी के साथ ही बीदासर में हुई। सं० १६६६ दिशा में सदा सतर्क प्रहरी हैं। अपने मुनि सप्रदाय में प्राचार्य बने। आप बड़े कठोर तपस्वी थे। के सर्वाङ्गीण विकास की ओर सतत् सचेष्ट हैं। आपके समय तेरा पन्थी सम्प्रदाय का अच्छा। ___'अणुव्रत आन्दोलन' द्वारा संघ में नैतिक एवं प्रचार हुआ। आप प्राकृत एवं संस्कृत भाषा के अच्छे उच्च जीवन स्तर निर्माण की दिशा में आपका यह विद्वान थे तथा अपने शिष्य समुदाय को भी इन प्रयत्न सब क्षेत्रों में प्रशंसनीय रहा। भारत के कई भाषाओं का अच्छा ज्ञान करने हेतु काफी लक्ष्य उच्च व्यक्तियों ने इस आन्दोलन की महत्ता को रक्खा । स्वीकार किया है । इस अान्दोलन के प्रबन प्रचार से आपका सं० १६६३ भाद्र पद शुक्ला ६ के दिन " आपने काफी प्रसिद्धि प्राप्त की है । साहित्य प्रकाशन गंगापुर में वंगवास हुआ। की ओर भी अच्छा लक्ष्य है । वर्तमान (सं० २०१६ वर्तमान आचार्य तुलसीरामजी महाराज के चातुर्मास ) में आपकी आज्ञा में १६८ सत तथा आप ही तेरापंथी सम्प्रदाय के वर्तमान कणधार ४७६ सतियां विद्यमान हैं। प्राचार्य है । सम्प्रदाय की गौरव वृद्धि के साथ साथ दिगम्बर सम्प्रदाय का वर्तमान सार्वजनिक क्षेत्र में आपने अच्छा सन्मान प्राप्त किया है। मुनि मंडल आपका जन्म सं० १९७१ कार्तिक शुक्ला २ को (संवत् २०१६ के चातुर्मास ) लाडन में हुआ। पिता का नाम झूमरमलजी खटेड आचार्य श्री शिवसागर जी महाराज, अजमेर । तथा माता का नाम बदनाजी था। मं० १९८२ में भाचार्य श्री महावार किर्तिजी म., उदयपुर । दीक्षा हुई । सं० १६६३ में बाईस वर्ष की अवस्था में क्षुल्लक गणेशप्रसादजी वर्णी, इसरी आचार्य पद से विभूषित किये गये। श्रापही के क्षुल्लक मह जानन्दजी आदि, भूपरी तलैया स्वहस्त से आपकी माता, ज्येष्ठ भ्राता तथा एक , सुनिसागरजी सिद्धसागरजी आदि, पन्ना बहिन को भी दीक्षित बनाया। इस प्रकार समस्त , आदिसागरजी, भीलाडी मऊ परिवार संयन मार्ग में प्रवर्जिा है। , सूरि सिंह जी, वसगडे Shree Sudhammaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034877
Book TitleJain Shraman Sangh ka Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManmal Jain
PublisherJain Sahitya Mandir
Publication Year1959
Total Pages222
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size133 MB
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