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________________ जैन श्रमण संघ का इतिहास HILD DIUAGIILAII II RID OUR BIDDIL AND RID OIL MIDDHI MID: Impal bil! IND DIII IDII II II IIIDOSJIDOHINDI भिन्न भिन्न आचार्यों के मुनि समुदाय वेजलपुर भरुच। भक्ति वि० ४ खंभात, खीमा वि० आ० श्री विजय भदसरिजी ठा० ५ राजकोट। पालीताणा, लब्धि वि० बाढमेर, कंचन वि० नागर श्रा० हिमाचल सरि जी, कांकरोली। मोरिया, जयन्त वि० मालेगाम चन्द वि० बेराणु, उ० धर्म विजयजी त्रापज (गु०) मुनि रमाणीक हर्ष विजयजी बीकानेर, जय विजयजी मोधरा, लब्धि वि० २ पेटलाद, सुन्दर वि० ३ जूनाडीसा, मनोहर वि० कमल वि. बामनवाडजी, महेन्द वि० घोवा वि०४ पालीताणा, तीर्थ वि० २ बडौदा, वयोवृद्ध नित्यानन्द वि० सीहोर, जय वि. सिरोही, भुवन वि० मुनि मणी विजयजी दादा बोस (गु०) कमल वि० सि०, विमल वि० शेडुभार (भमरेली) महायश वि० गंभीरा, मुनि दर्शन वि, त्रिपुटी अहमदाबाद, वीर वि. राजपुर (गु०) रत्नशेखर वि० नवाडीसा, समय वि० सिलदर, लक्ष्मी वि० बाढ़मेर भव्यानंद विजयजी दामा, कनक वि० भरत गौतम वि० पालीताणा, देव गढ़ सीवाना, कंचन विजयजी गोधरा, मनक विजयजो सुन्दरजी भावनगर, प्रेम सुन्दरजी पालीताणा कनक भडौच, मनमोहन वि० गरीयाधार भदानंद वि० वि० बनारस । खरतर गच्छ का श्रमणसमुदाय लेखक-इतिहास मनीषी श्री अगर चन्दजी नाहटा, बीकानेर [यह लेख “सेवा समाज" बम्बई के श्रमण दर्शन विशेषांक में प्रकाशित हुआ है। एवं लेख में खरतर गच्छ के प्राचीन इतिहास पर तथा अर्वाचीन स्थिति पर अच्छा प्रकाश डाला गया है । अतः हम उसे ही यहाँ उद्धृत करना विशेष उपयुक्त समझ कर साभार उद्धृत करते हैं। -लेखक वर्तमान में श्वेताम्बर सम्प्रदाय के गच्छों में तपा- तरह पायचन्द और लौकागच्छ भी। पायचन्द गच्छ : गच्छ, स्वरतरगच्छ, अंचल गच्छ, पायचन्दगच्छ और १६ वीं शताब्दी के नागपुरीय तपागच्छ के पाश्वचन्द लौकागच्छ ही उल्लेखनीय हैं । अन्य कई गच्छों के सर के नाम से प्रसिद्ध हुआ और लौं कागच्छ १६ महात्मा लोग राजस्थान आदि के किसी गाँव में वी शताब्दी के मूर्तिपूजाविरोधी, लौंका शाहके नाम मिलते हैं । वे कुलगुरु या मंथन (मथरण ) कहलाते से । वर्तमान गच्छों में सबसे अधिक प्रभाव तपागच्छ है । ओसवाल, पोरवाल, श्रीमाल जातियों के कई और खरतरगच्छ इन दो का ही रहा है । यद्यपि अब गौत्रों के वे अपने को कुलगुरु मानते हैं और उन खरतरगच्छ का प्रभाव तपागच्छ से कम हो गया है, गोत्रों की वंशावलियाँ भी उनके पास कुछ २ मिलती पर मध्यकालीन इतिहास में उसका बहुत प्रभाव हैं। पर गच्छों का कोई साधु समुदाय नहीं है। दिखाई देता है । मुनि जिन विजयजी "खरतरगच्छ उपरोक्त पाँच गच्छों में से अन्चलगच्छ का समुदाय पट्टावली समह के" किंचित वक्तव्य में लिखते हैं; सीमित क्षेत्र में और थोड़े परिमाण में है। इसी "श्वेताम्बर जैनसंघ जिस स्वरूप में आज विद्यमान Shree Sudhammaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034877
Book TitleJain Shraman Sangh ka Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManmal Jain
PublisherJain Sahitya Mandir
Publication Year1959
Total Pages222
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size133 MB
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