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________________ ग्रंथ भंडार लेडीहार्डिंजरोड माटुंगा ( बम्बई) mmmmmmmmmmmmm पांच रुपये देकर ग्राहक होनेवालोंसे रु. २५) ३ पीछेसे ग्रंथकी कीमत जितनी रखी जाय उतनी । जो सज्जन इस ग्रंथकी ५ प्रतियोंके ग्राहक होंगे वे सहायक, जो १० के ग्राहक होंगे वे आश्रयदाता, जो १५ के ग्राहक होंगे वे रक्षक, और जो २० के ग्राहक होंगे वे पोषक समझे जायँगे । हमारे अन्य जैनग्रंथ २ जैनरामायण (अ०–श्रीयुत कृष्णलाल वर्मा) इसमें राम, लक्ष्मण, सीता और रावणके मुख्यतासे और हनुमान, अंजनासुन्दरी, पवनंजय तथा वालीके गौणरूपसे चरित्र हैं । प्रसंगवश और भी कई कथाएँ इसमें आ गई हैं। वर्णन करनेका ढंग बड़ा ही सुन्दर है । हिन्दु रामायणसे यह बिलकुल भिन्न है । इसके पढ़नेसे पाठकोंको यह भी ज्ञात हो जाता है, कि रामचंद्रजीकी ओरसे युद्ध करनेवाले 'वानर' पशु नहीं थे बल्कि वे विद्याधर थे। 'वानर' एक वंशका नाम था। इसी तरह रावण आदि ‘राक्षस-दैत्य नहीं थे बल्कि 'राक्षस' एक वंशका नाम था । जैनाचार्य, श्रीहेमचंद्राचार्य रचित त्रिषष्टिशलाका पुरुषचरित्रके सातवें पर्वका यह अनुवाद है । छपाई सफाई बढ़िया । पक्की बाइंडिंग । ऊपर सुनहरी अक्षर । मू० ४) रु. ३ स्त्रीरत्न (लेखक-श्रीयुत कृष्णलाल वर्मा ) इसमें ब्राह्मी, सुंदरी और चंदनबालाके पावन चरित्र हैं । इनका वाचन जीवनको उच्च व धर्म-परायण बनाता है और संसारकी वासनाओंसे छुड़ाकर कर्तव्यमार्गपर लगाता है । चार सुंदर चित्रोंसे सुशोभित । दूसरी बार छपी है । मू० पाँच आने । ४ सुरसुंदरी या सात कौड़ीमें राज्य (लेखक-श्रीयुत कृष्णलाल वर्मा) [स्त्री समाजके लिए सुंदर भेट ] बालपनका शिक्षाकाल और आनंद, पति पत्नीका उल्लासमय जीवन, प्रति पेजमें पवित्रताकी अपूर्व भावनाएँ, पतिकी भूलका दुखद: परिणाम, सुरसुंदरीपर पड़े हुए Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034871
Book TitleJain Ratna Khand 01 ya Choubis Tirthankar Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKrushnalal Varma
PublisherGranth Bhandar
Publication Year1935
Total Pages898
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size96 MB
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