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स्थानकवासी जैन सद्गृहस्थ ३५ ~~~immmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmm. गया। सं० १९७४ में उदयपुरमें प्लेगका दौर दौरा हुआ। इन्होंने अपने कुछ उत्साही मित्रोंके साथ सेवा समिति कायम की । और उस समिति द्वारा करीब साढ़े तीन हजार आदमियोंको दवा-सेवा-वस्त्रादिसे मदद की। ___ प्लेग समाप्त होनेके चार ही महीने बाद इन्फ्लुएंजाका रोग शुरू हुआ। इसमें भी इन्होंने सेवासमितिद्वारा करीब चार हजार स्त्रीपुरुषोंको मदद पहुँचाई।
फिर सं० १९७६ में कॉलेरा हुआ। ये अपने मित्रों सहित सेवा-कार्यमें जुट गये और एक महीने तक सेवा करते रहे । ___ इन भयंकर छूतके रोगोंमें जब लोग डर डरके दूर भागते हैं सेवाका काम करना वास्तवमें बड़ी ही प्रशंसाकी बात है । इन्होंने सेवा ही नहीं की बल्के धनसे भी आवश्यकतानुसार सहायता पहुँचाई । ___ सं० १९७७ में इन्होंने एक · ओसवाल सेवासमिति' कायम कर उसके द्वारा ढाई बरस तक ओसवाल जातिकी सेवा की।
सं० १९७९ में 'मेदपाट छात्रालय' की स्थापना कर उसके द्वारा डेढ बरस तक मेवाडके विद्यार्थियोंकी सेवा करते रहे । ___ सन् १९१९ से ' सार्वजनिक कन्याशाला उदयपुर ' की संयुक्त मंत्रीके नाते सेवा कर रहे हैं। आजकल इनका जीवन सार्वजनिक कन्याशालाकी सेवाहीमें बीत रहा है। रातदिन इसके सिवा किसी दूसरी बातकी तरफ बहुत कम ध्यान देते हैं। यह इन्हीके उद्योगका फल है कि, आज सार्वजनिक कन्याशालाका एक मकान भी बन गया है और उसमें कन्याओंके लायक सब तरहकी अच्छी तालीम दी जा रही है।
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