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________________ श्वेताम्बर स्थानकवासी जैन १५ सेठ हीरजी भोजराज एण्ड सन्स .-- -- हीरजी सेठ गाँव मेराऊ ( मांडवी-कच्छ ) के रहनेवाले थे। स्यानकवासी धर्म पालते थे। इनका जन्म करीब सं० १९०० में हुआ था। इनके पिता भोजरानजीकी हालत बिलकुल साधारण थी। इसलिए हीरजीभाई कपाईकी तलाशमै सं० १९१५ में अपनी पन्द्रह बरसकी आयुमें बंबई माये । ____ आकर प्रारंभमें मजदूरी करने लगे । दिन भर महनत करके जो कुछ कमाते उससे आधा बचाते और आधा खाते । एक वर्ष तक उन्होंने इस तरह मनदूरी करके कुछ रुपये जमा किये । और उस थोडीसी पूंजीसे मोदीकी दुकान प्रारंभ की। कुछ बरसों तक मोदीकी दुकान करनेके बाद उन्होंने घासका व्यापार प्रारंभ किया। इसके साथ ही उन्होंने ईटोंका व्यापार मी शुरू किया। इस रोजगारमें खूब कमाई की । नब इनका यह धंधा खूब चलने लगा तब इन्होंने कंट्राक्टका काम भी शुरू किया और इसमें खूब धन कमाया । इसके बाद इस्टेट ( जमन जायदाद ) का और साहूकारीका धंधा प्रारंभ किया । वह मानतक चालू है। अपनी महनत, Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034871
Book TitleJain Ratna Khand 01 ya Choubis Tirthankar Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKrushnalal Varma
PublisherGranth Bhandar
Publication Year1935
Total Pages898
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size96 MB
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