SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 847
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ जैनरत्न ( उत्तरार्द्ध) ४-देवकांवाई-इनके लग्न सा वेलनी नेणसीक माथ हुए थे। ५-देमुंबाई-इनके लग्न सा पोपटमाई लालनीके साथ हुए थे। ६-चंपाबाई-इनके लग्न भी सा. वेलजी नेणसीके पाय ही, देवकांबाईका देहांत हो जाने पर, हुए थे। ___७-रतनबाई-इनका जन्म सं० १९५८ में हुआ था। इन्होंने थर्ड इंग्लिश और सातवीं गुनराती तक अभ्यास किया था । इनके पूर्व जन्मके संस्कार अच्छे थे। इसलिए बचपन ही. से इन्हें धर्ममें बड़ी श्रद्धा थी। ये धर्ममय जीवन बिताती थीं। बालब्रह्मचारिणी रहनेका निश्चय था और अपने मातापिताको भी इस निश्चयकी सूचना देदी थी। आखिर सं० १९७७ में आठ कोटि नानी पक्षके सिंघाड़ेके महासती पाँचीबाईजीके पाससे इन्होंने दीक्षा ले ली । धर्मात्मा माइयोंने धूमधामके साथ अपनी संसारके सुखोंसे उदास बनी हुई बहिनको दीक्षा दिला दी। इनका दीक्षाका नाम रतनबाई स्वामी हुआ। पाँच बरस तक जप, तप, व्रत पञ्चखाणादि करके सं० १९८३ में इन्होंने देहत्याग कर दिया । Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034871
Book TitleJain Ratna Khand 01 ya Choubis Tirthankar Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKrushnalal Varma
PublisherGranth Bhandar
Publication Year1935
Total Pages898
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size96 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy