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________________ ५० जैन-रत्न ....... ....nnn.moraliyav...Aank ho...... उन्होंने वीश स्थानकका* आराधनकर तीर्थकर नाम लब्धि-इससे मनुष्य एक वस्तुको जानकर सारे श्रुतशास्त्रोंको जान सकता है। १०-वचनबली लब्धि-इससे मूलाक्षर याद करनेसे सारे शास्त्र अन्तर्मुहूर्तमें याद कर सकता है । ११-कायबली लब्धि-इससे मनुष्य बहुत कालतक मूर्तिकी तरह कायोत्सर्ग करनेपर भी थकता नहीं है । १२-अमृतक्षीरमध्वाज्याश्रवि लब्धि-इस लब्धिवाले के पात्रमें अगर खराब चीज होती है तो भी वह अमृत, क्षीर ( दूध ) मधु ( शहद ) और बीके समान स्वाद देनेवाली हो जाती है और उसका वचन अमृत, क्षीर, मधु और घीके समान तृप्ति देनेवाला होता है । १३-अक्षीण महानसी लब्धि-इससे पात्रमें पड़ा हुआ पदार्थ अक्षय ( कभी समाप्त नहीं होनेवाला ) हो जाता है। [इसी लब्धिके कारण एक बार गौतम स्वामी एक पात्रमें क्षीर लाये थे और उससे पन्द्रह सौ तपस्वियोंको पारण कराया था।] १४-अक्षीण महालय लब्धि-इससे थोड़ी जगहमें भी असंख्य प्राणियोंके रहनेकी व्यवस्था की जा सकती है । १५-संभिन्न श्रोत लब्धि-इसके कारण एक इन्द्रीसे सभी इन्द्रियोंके विषयका ज्ञान हो जाता है । १६-१७-जंघाचारण और विद्याचारण लब्धियाँ-इन दोनों लब्धियोंसे जहाँ इच्छा हो वहाँ जा सकते हैं । इनके अलावा और भी अनेक लब्धियाँ हैं कि जिनसे किसीकी भलाई या बुराई की जा सकती है। ___ *१ इन्हें बीस पद भी कहते हैं । वे ये हैं-१ अरिहंतपद-अर्हत और अर्हतोंकी प्रतिमाकी पूजा करना उन पर लगाये हुए अवर्णवादका निषेध करना और अद्भुत अर्थवाली उनकी स्तुति करना, २-सिद्धपद सिद्ध स्थानमें रहे हुए सिद्धोंकी भक्तिके लिए जागरण तथा उत्सव करना और उनका यथार्थ कीर्तन करना, ३--प्रवचनपद-बाल, ग्लान और नव दीक्षित शिष्यादि यतियोंपर अनुग्रह करना और प्रवचम यानी चतुविध जैनसंघका वात्सल्य करना; ४-आचार्यपद-अत्यन्त सत्कार Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034871
Book TitleJain Ratna Khand 01 ya Choubis Tirthankar Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKrushnalal Varma
PublisherGranth Bhandar
Publication Year1935
Total Pages898
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size96 MB
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