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जैनरत्न ( उत्तरार्द्ध )
और प्रभावशाली था । उनकी बड़ी बड़ी आँखोंके तेजमें लोग अंजित हों जाते थे। ऐसी महान बाईका पैंसठ बरसकी उम्र में देहांत हो गया ।
मूरबाईके पीछे उनके पुत्र खीमजी भाईने सांधाण, धुँवाई और छछीकी सारी प्रजाको जिमाया था । और अपनी जातिको तीन टक जिमाया था । मूरबाईने धार्मिक कार्योंकी व्यवस्था जिस तरह की थी उसी तरह उनके लड़के खीमजी भाई आज तक कर रहे हैं ।
सौभाग्यवती गुलाबबाई मकनजी महता
इनका जन्म सं० १९४७ के वैशाख वदि ७ के दिन कलकत्ते में हुआ था । इनके पिता इन्द्रजी सेठ कलकत्ते के एक बड़े व्यापारी थे । इनका प्यारका नाम लाडकुँवर था ।
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नीम
इनका व्याह सन १९०२ में बेरिस्टर श्री मकनजी जूठाभाई महताक साथ हुआ। श्री मकनजी उस समय सेंट झेवियर कॉलेज में थे । दम्पतिका जीवन बड़े सुखसे बीता है । कहा जाता है कि बरसके वैवाहिक जीवनमें कभी इनका पतिके साथ कलह न श्रीमतीजी अच्छी सुशिक्षिता हैं और बड़े कुटुंबके अनेक कामोंमें व्यस्त रहते हुए भी सामाजिक कार्योंमें भाग लेती रहती हैं । कई बरस से आप 'जैन महिलासमाज ' की उपप्रमुख हैं । जुन्नेर और सांगली में जैनमहिला परिषदके अधिवेशन हुए थे उनकी आप प्रमुख चुनी गई थीं । सन १९३४ में श्वेतांबर जैन कॉन्फरंसके साथ जैनमहिला - परिषदका अधिवेशन हुआ था उस समय आप स्वागत समितिकी प्रमुख चुनी गईं थीं । आप जैनकॉन्फरंस की स्टेंडिंग कमेटीकी सभासद हैं ।
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