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जैन-रत्न
अन्यान्य तेरह रत्न भी उनको उसी समय प्राप्त हुए। जब उन्होंने पुष्कलावती विजयको अपने अधिकारमें कर लिया तब समस्त राजाओंने मिलकर उनपर चक्रवर्तित्वका अभिषेक किया । ये चक्रवर्तीकी सारी संपदाओंका भोग करते थे तो भी इनकी बुद्धि हर समय धर्म-साधनकी ओर ही रहती थी। __एक बार वज्रसेन भगवान विहार करते हुए पुंडरीकिणी नगरीके निकट समोसरे । वज्रनाभ भी धर्मदेशना सुननेके लिए गये । देशना सुनकर उनकी वैराग्य-भावना बहुत ही प्रबल हो गई। उन्होंने अपने पुत्रको राज्य सौंपकर दीक्षा ल ली । घोर तपस्या करने लगे । तपश्चरणके प्रभावसे उनको खेलादि लब्धियाँ प्राप्त हुई; परन्तु उन्होंने लब्धियोंका कभी ___x१ खेलौषधि लब्धि-इस लब्धिवालेका थूक लगानेसे कोढ़ियोंके कोढ़ मिट जाते हैं। २-जलौषधि लब्धि-इस लब्धिवालेके कान, नाक और शरीरका मैल सारे रोगोंको मिटाता है और कस्तूरीके समान सुंगधवाला होता है। ३-आमौषधि लब्धि-इस लब्धिवालेके स्पर्शसे सारे रोग मिट जाते हैं । ४-सौषधि लब्धि-इस लब्धिवालेके शरीरसे छूआ हुआ बारिशका जल और नदीका जल सारे रोग मिटाता है । इसके शरीरसे स्पर्शकरके आया हुआ वायु जहरके असरको दूर करता है । उसके वचनका स्मरण महाविषकी पीडाको मिटाता है और उसके नख, केश, दाँत और शरीरसे जो कुछ होता है वह दवा बन जाता है । ५-वैक्रिय लब्धि-इससे नीचे लिखी शक्तियाँ प्राप्त होती हैं१-अणुत्व शक्ति-बारीकसे बारीक वस्तुमें भी प्रवेश करनेकी
शक्ति । सूईके नाके से इस शक्तिवाला निकल सकता है । २-महत्व शक्ति-इस शक्तिसे शरीर इतना बड़ा किया जा ___ सकता है कि मेरु पर्वतका शिखर भी उसके घुटने तक रहे।
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