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________________ Mmm. કર जैनरत्न ( उत्तरार्द्ध ) ३. जालमचंद्रजी महाराज उनके बाद उनके शिष्य जालमचंद्रजी महागज गद्दीपर बैठे । उनके बाद ४. गुलाबचंद्रजी महाराज गद्दीनशीन हुए। इन महाराजने अपने शीलस्वभावके कारण शहरमें अच्छी प्रतिष्ठा प्राप्त की। इन्होंने तीर्थयात्रादि धर्मकामोमें करीब दस हजार रुपये खर्च किये । य बड़े मिलनसार और अतिथि-सत्कार करनेवाले थे। मेवाड़हीके नहीं सारे हिन्दुस्थानके यति जब कभी केसरियाजीकी यात्राके लिए उदयपुर आते थे वे आपहीके यहाँ आकर ठहरते थे। कहा जाता है कि शीलस्वभावके कारण शहरमें आपकी बड़ी प्रतिष्ठा थी। यतिश्री अनूपचंद्रजी इनका जन्म सं० १९४३ में हुआ था । ये जब छः बरसके थे तभी सं० १९४९ में इनके मातापिता इनको उदयपुरके पीपलीवाले उपाश्रयके यतिजी महाराज श्रीलछमीलालजीके भेट कर गये थे । लछमीलालजी महारान बड़े विद्वान थे । उनके अक्षर मोतीके दानेसे गोल और सुंदर होते थे। उन्होंने भगवतीसत्रकी १३ और ४५ आगमोंकी दो दो नकलें की थीं। वे शहरमें बहुत अच्छे शिक्षक भी थे । शहरके कई बड़े बड़े Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034871
Book TitleJain Ratna Khand 01 ya Choubis Tirthankar Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKrushnalal Varma
PublisherGranth Bhandar
Publication Year1935
Total Pages898
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size96 MB
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