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________________ १३२ ~~~~~~~~~~ जैनरत्न ( उत्तरार्द्ध) के ये सभापति हैं । यतिसमाजमें दो चार उत्साही समाजका काम करनेवाले हैं उनमेंके आप एक हैं । जैनसमाजको इनसे बड़ी आशा है । ये खादीके बड़े भक्त हैं । हमेशा शुद्ध खादी पहनते हैं। इस समय इनके गुरुजीका देहांत हो गया है । ये अपने गुरुजीकी जगह श्रीपून्य हुए हैं और धरणेन्द्रमारजीके नामसे पहचाने जाते हैं। यति श्रीउदयचंद्रजी महाराज यति उदयचंद्रजी महाराज जिस समय भीलवाड़ेसे उदयपुर आय उस समय महाराणा जवानसिंहजी राज करते थे । यहाँ शेरसिंही महता बड़े प्रतिष्ठित व्यक्ति थे और उस समय वे प्रधान थे । एक दिन उनकी पत्नी टट्टी गई थी तब उसके नाकमेंसे नथ गिर पड़ी । वह नथ भंगिन उठा कर ले गई । नथ हीरामोतियोंसे जड़ी हुई थी। उसका मूल्य दस हजार रुपये था । नथ कौन ले गया सो कोई न जान सका । पुलिसने बड़ी दौडधूप की । कइयोंको मारा पीटा; मगर नथका पता न चला । शेरसिंहजी निराश होकर बैठ रहे। Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034871
Book TitleJain Ratna Khand 01 ya Choubis Tirthankar Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKrushnalal Varma
PublisherGranth Bhandar
Publication Year1935
Total Pages898
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size96 MB
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