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जैन-रत्न
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छोड़ा तब उन्होंने सविधि वंदना करके महाराजसे इलाज करानेकी प्रार्थना की। यह भी निवेदन किया कि चिकित्सामें किसी जीवकी हिंसा नहीं होगी। महाराजने इलाज करनेकी सम्मति दे दी । वे तत्काल ही एक गायका मुर्दा उठा लाये । फिर उन्होंने मुनि महाराजके शरीरमें लक्षपाक तैलकी मालिश की। तैल सारे शरीरमें प्रविष्ट हो गया । तैलकी अत्यधिक उष्णताके कारण मुनि महाराज मूर्छित हो गये । शरीरके अंदरके कीड़े व्याकुल होकर शरीरसे बाहिर निकल आये । जीवानंदने रत्नकंबल मुनि महागजके शरीर पर ओढ़ा दिया । कंबल शीतल था इसलिए सारे कीड़े उसमें आ गये । जीवानंदने आहिस्तगीसे कंबलको उठाकर गायके मुर्दे पर डाल दिया। 'सत्पुरुष छोटेसे छोटे अपकारी कीड़ेके प्राणोंकी भी रक्षा करते हैं।' कीड़े गायके शरीरमें चले गये। जीवानंदने मुनि महाराजके शरीर पर अमृतरसके समान प्राणदाता गोशीर्ष चंदनका लेप किया। उससे मुनि महाराजकी मुर्छा भंग हुई । थोड़ी देरके बाद
और लक्षपाक तैलकी मालिश की । पहिली बार चर्मगत कीड़े निकले थे; अबकी बार मांसगत कीड़े निकले । उनको भी पूर्ववत् गऊके शवमें छोड़ दिया और गोशीर्ष चंदनका लेप किया। तीसरी बार और लक्षपाक तैल मला । उससे हड्डियोंमेंके सब कीड़े निकल गये । पूर्ववत् कीड़ोंको गोशवमें छोड़कर बड़े भक्तिभावसे जीवानंदने मुनिमहाराजके शरीरमें गोशीष चंदनका विलेपन किया। उससे उनका शरीर स्वस्थ होकर कुंदनकी भाँति दमकने लगा। जीवानन्दने और उसके पाँचों साथियोंने
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