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________________ श्वेताम्बर मूर्तिपूजक जैन १०५ इनके दिलमें भी यह खयाल आया कि क्यों न पालीतानेमें भी ऐसी व्यवस्था की जाय कि जहाँ पर रहकर सैंकड़ों जैनविद्यार्थी धर्मशास्त्रोंका, प्राकृतका और संस्कृतका अध्ययन करें । इन्होंने यात्रासे लौटते ही कच्छका प्रवास किया और गाँवगाँवमें फिरकर बोर्डिंगमें रहनेवाले लड़कोंके लिए खर्चेका प्रबंध किया एवं मातापिताओंको समझा कर ३१ लड़के एकत्र किये और उन्हें पालीताने लाकर सं० १९९९ के आषाढ सदि १५ को बोर्डिंगकी स्थापना की। बोर्डिंगका नाम 'जैनबोर्डिग पालीताना' रखा। उसी मौके पर ‘जैनधर्मविद्याप्रसारकवर्ग' नामकी संस्था भी कायम की। और 'आनंद' नामका मासिक पत्र भी प्रकाशित कराया। ___इनकी यह प्रवृत्ति 'वीरबाई जैनपाठशाला' के एक ट्रस्टीको अच्छी न लगी। इसलिए इन्होंने पाठशाला छोड़ दी और बोर्डिंगहीमें रहने लगे। इनके कुटुंबके खर्चेके लिए सर विमनर्जी अपने जेब खर्चमेंसे ४०) रु. मासिक देने लगे । सं० १९६० में सर विसनजी त्रिकमजी जे. पी. ने ५० हजार और सेठ खेतसी खीअसी जे. पी. ने ५० हजार उस बोडिंगको दिये। बोर्डिगका नाम बदलकर 'सर विसनी त्रिकमजी जे. पी. तथा सेठ खेतसी खीअसी जे. पी. जैनबोडिग स्कूल पालोताना' रखा गया। Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034871
Book TitleJain Ratna Khand 01 ya Choubis Tirthankar Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKrushnalal Varma
PublisherGranth Bhandar
Publication Year1935
Total Pages898
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size96 MB
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