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________________ श्रीआदिनाथ-चरित -------- वज्रजंघ न्यायपूर्वक शासन और राज्य-लक्ष्मीका उपभोग करने लगा। वज्रजंघके श्वसुर वज्रसेनने भी अपने पुत्र पुष्करपालको राज्य देकर दीक्षा ले ली । कुछ कालके बाद सीमाके सामंत राजा लोग पुष्करपालसे युद्ध करनेको खड़े हुए। वज्रजंघ अपने सालेकी मददको गया। सामंतोंको परास्तकर जब वह वापिस लौटा तब मार्गमें उसे सागरसेन और मुनिसेन नामक दो मुनियोंके दर्शन हुए । मुनियोंकी देशना सुनकर उसके हृदयमें वैराग्य उत्पन्न हुआ। वह यह विचारता हुआ अपने नगरको चला कि, मैं जाते ही अपने पुत्रको राज्य देकर दीक्षा ग्रहण कर लूँगा । नगरमें पहुँचा और वैराग्यकी भावना भाता हुआ अपने शयनागारमें सो गया। उधर वज्रजंघके पुत्रने राजके लोभसे, धनका लालच देकर, मंत्रियोंको फोड़ लिया और गजाको मारनेका षड्यंत्र रचा। आधी रातके समय राजकुमारने वज्रजंघके शयनागारमें विषधूप किया । जहरीले तेज धूएने राजा और रानीके नथनोंमें घुसकर उनका प्राण हर लिया। सातवाँ और आठवाँ भव-राजा और रानी त्यागकी शुभ कामनाओंमें मरकर उत्तरकुरुक्षेत्रमें युगलिया पैदा हुए। वहाँसे आयु समाप्त कर दोनों सौधर्मदेवलोकमें अति स्नेह वाले देवता हुए । दीर्घकाल तक सुखोपभोगकर दोनोंने देवपर्यायका परित्याग किया। Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034871
Book TitleJain Ratna Khand 01 ya Choubis Tirthankar Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKrushnalal Varma
PublisherGranth Bhandar
Publication Year1935
Total Pages898
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size96 MB
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