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________________ श्वेताम्बर मूर्तिपूजक जैन ९३ स्टेशनके सामने एक अच्छी धर्मशाला बना दी और मुसाफिरोंसे आशीर्वाद लिया । ये तीन बरस तक दारव्हा तालुका बोर्डके उपप्रमुख रहे थे । इस पद पर रहकर इन्होंने दारव्हा तालुकेकी बहुत सेवा की थी । माताके ये बड़े भक्त थे। जब तक माता जीवित रहीं बडे प्रेमसे ये उनकी सेवा करते रहे । हमेशा माताने जो हुक्म दिया वही किया । कभी माताकी आज्ञा न टाली । उनके देहांत होने पर बड़ी अच्छी तरह सभी लोकाचार किये । मौसर कर जाति बंधुओं में प्रति घर एक चांदीकी अमरतीकी ल्हाण बाँटी । T I ये राजनीतिक, सामाजिक और धार्मिक सभी कामोंमें रस लेते हैं और उनमें यथासाध्य तन, मन और धनसे सहायता करते हैं । जैनधर्मके आप बड़े भक्त हैं । हमेशा सेवा, पूजा, सामायिक आदि कार्य किया करते हैं | अतिथि सत्कार इनका एक मुख्य गुण है । हमें मालूम हुआ है, कि दारुहेमें आये हुए किसी भी साधर्मी बंधुक ये अपने यहाँ भोजन कराये बिना नहीं जाने देते । इनका स्वभाव मिलनसार और उदार है । Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034871
Book TitleJain Ratna Khand 01 ya Choubis Tirthankar Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKrushnalal Varma
PublisherGranth Bhandar
Publication Year1935
Total Pages898
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size96 MB
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