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________________ श्वेताम्बर मूर्तिपूजक जैन मेटमें तीन बरसतक मुकादमका काम किया । सं० १९७१ में इनका देहांत हुआ। इनके एक कन्या हुई थी। वह भी गुजर गई। उनकी विधवा श्रीमती कुँवरबाई मौजूद हैं। डूंगरसीभाईकी कार्यकुशलतासे मूलनी जेठा कंपनीके संचालक खुश हुए और उन्होंने त्रिकमजीभाईको वह जगह दी जो आजतक चाल है। त्रिकमजीके दो लग्न हुए। प्रथम लग्न सं० १९५२ में नलिया (कच्छ) वासी श्रीयुत रायमल हीरनीकी लड़की ममु. बाईके साथ हुए । उनके दो लड़कियाँ हुई थीं। वे मर गई। दूसरे लग्न सं० १९६२ में जेतली गेलाकी लड़की राजबाईके साथ हुए। उनके चार लडके और दो लड़कियाँ हुई। उनमेंसे दो लड़के और एक लड़की गुजर गये । अभी लड़के पदमसी, व जीवराज और कन्या पूरबाई मौजूद हैं। पूरबाईके लग्न जखौके सेठ काननी पांचारियाके लड़के वीरचंदके साथ हुए। इसमें इन्होंने पन्द्रह हजार रुपये खर्च किये। ___ इनको संगीत और वाचनका अच्छा शोक है । ये, शान्त, विनयी, प्रामाणिक और बुद्धिमान व्यक्ति हैं । वे अपनी भोजाईका अपनी माताके समान आदर करते हैं। बाई मी त्रिकमजीमाईको अपने लड़केके समान समझती है। त्रिकमनीमाई उदार मनुष्य हैं। इन्होंने दान किया है मगर सभी गुप्त । कच्छी दमा ओसवाल ज्ञातिके ये एक प्रतिष्ठित व्यक्ति हैं। Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034871
Book TitleJain Ratna Khand 01 ya Choubis Tirthankar Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKrushnalal Varma
PublisherGranth Bhandar
Publication Year1935
Total Pages898
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size96 MB
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