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________________ तीर्थंकर चरित-भूमिका ३१ करता है, हंसलक्षणवाले श्वेत देवदुष्य वस्त्रसे शरीरको आच्छा दन करता है और मणिकाके आभूषणोंसे उसे विभूषित करता है । दूसरे देवता भी इन्द्रकी भाँति ही शरीरको स्नानादि कराते हैं । फिर एक रत्नकी शिविका तैयार करते हैं । इन्द्र शरीरको उठाकर शिविकामें रखता है। इन्द्र ही उसको उठाता है । शिविकाके आगे आगे कई देवता धूपदानियाँ लेकर चलते हैं। कई शिविकापर पुष्प उछालते हैं, कई उन पुष्पोंको उठाते हैं। कई आगे देवदुष्य वस्त्रोंके तोरण बनाते हैं, कई यक्षकर्दमका (धूप) छिड़काव करते हैं, कई गोफनसे फैंके हुए पत्थरकी तरह शिविकाके आगे लोटते हैं, और कई रुदन करते हुए पीछे पीछे आते हैं। __इस तरह शिविका चिताके पास पहुँचती है । इन्द्र प्रभुके शरीरको चितामें रखता है । अग्निकुमार देवता चितामें अग्नि लगाता है । वायुकुमार देवता वायु चलाता है इससे चारों तरफ अग्नि फैलकर जलने लगती है । चितामें देवता बहुतसा कपूर और घड़े भर २ के घी तथा शहद डालते हैं। जब अस्थिके सिवा सब धातु नष्ट हो जाते हैं तब मेघकुमार क्षीर समुद्रका जल बरसाकर चिता ठंडी करता है । फिर सौधर्मेंद्र ऊपरकी दाहिनी डाढ़ लेता है, चमरेन्द्र नीचेकी दाहिनी डाढ़ लेता है, ईशानेन्द्र ऊपरकी बाई डाढ़ ग्रहण करता है और बलीन्द्र नीचेकी बाई डाढ़ लेता है । अन्यान्य देव भी अस्थियाँ लेते हैं। फिर वे जहाँ प्रभुका अग्निसंस्कार होता है उस स्थानपर तीन समाधियाँ वनाते हैं और तब सब अपने २ स्थानपर चले जाते हैं। Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034871
Book TitleJain Ratna Khand 01 ya Choubis Tirthankar Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKrushnalal Varma
PublisherGranth Bhandar
Publication Year1935
Total Pages898
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size96 MB
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