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________________ जैनरत्न ( उत्तरार्द्ध ) योंके रिपोर्ट प्रायः वे ही तैयार करते थे। सन् १९११ में वे अनंतनाथनी के मंदिरके ट्रस्टी चुने गये और सन् १९१४ से सन् १९२२ तक वे मंदिर और फंडके मॅनेजिंग ट्रस्टी रहे। जैन श्वेतांबर कॉन्फरेंसमें वे हमेशा जातिकी तरफसे प्रतिनिधि चुने जाते थे । दूसरी बार बंबई में कान्फरेंस हुई उस समय पंडित लालन और शिवजीके कारण झगड़ा चल रहा था। बंबई में इसी झगड़ेको लेकर कॉन्फरेंस के दो माग हो जानेवाले थे। मगर लखमसीमाईके यत्नसे वह झमड़ा रुक गया। __ जैन श्वेतांबर एज्युकेशनल बोर्डके, जैन एसोसिएशन ऑफ इंडियाके और मांगरोल जैन समाके और यशोविजय गुरुकुल पालीतानेकी एडवाइजरी बोर्डके ये मेम्बर थे । लंडनमें स्थापित वी जैन लिट्रेचर सोसायटी' के वे आजीवन सभ्य थे। 'सेंट झेविअर कॉलेज के वे ऑनरेरी खजानची थे। ___ अपने और अपने अनेक मित्रोंकी कठिनतासे उन्होंने अनुभव किया कि जब तक अपनी कोई शिक्षण संस्था न होगी तब तक जाति उन्नत न बनेगी । इस लिए उन्होंने यत्न करके सन १९०० में ' कच्छी दशा ओसवाल ' जैन पाठशाला और सन १९०३ में कच्छी दशा ओसवाल जैन बोर्डिंगकी स्थापना, अपने कई मित्रों और जाति-हितैषियोंकी सहायतासे की। इन संस्थाओंके कई बरसों तक ये मंत्री और प्रमुख रहें और Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034871
Book TitleJain Ratna Khand 01 ya Choubis Tirthankar Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKrushnalal Varma
PublisherGranth Bhandar
Publication Year1935
Total Pages898
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size96 MB
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