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________________ ५७६ पे. ला. अशुद्ध शुद्ध ३३५ २७-नागकुमार नामके । कंबल और शंबल नामके नाग कुमार । ३३८ २१-केवल त्रिषष्ठि । किंतु त्रिषष्ठि । ३४७ २२-नग्न जैन साधु । | नग्न साधु । ३४९ ११-मही वीरको। महावीरको। ३६३ ९-दस दिनकी। पचीस दिनकी। ३७६ ११-वल्लभविजयजीके शिष्य । वल्लभविजयजीके साथ गुजरान वालामें मुनि जयविजयजीके शिष्य । ३७९ १४-नीरोग है और कोई नौकर। नीरोग है और कोई रोगी। ३८० ८-इन्द्रियोंको स्मरण । इन्द्रियोंके अर्थको स्मरण ।। ३८० १४-हैं ही नहीं। हैं कि नहीं। ३८६ २४-पूर्वांग। ३८७ १६-तैतर्य। मेतार्य । ३९३ १७-बुद्धिमान । बुद्धिमती। ३९७ १-बारह श्रावक । दस श्रावक । ३९८ ७-४० गायोंके । ४० हजार गायोंके। ३९८ ९-४० गायोंके । ४० हजार गायोंके। ४१५ १२-मुनते हैं। सुनते हैं। ४२९ ६-रातदित । रात दिन । ४३७ ६-रजुगति । कजुगति । ४३८ ११-दिए गृहस्थ । दिन गृहस्थ। ४५४ ३-हही 'जैनदर्शन। वही जैनदर्शन। ४३९ १६-अधिकमास हमेशा चेत, बेसाख, जेठ असाढ या सावनहीं में आते हैं। । पूर्व । xxx Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034871
Book TitleJain Ratna Khand 01 ya Choubis Tirthankar Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKrushnalal Varma
PublisherGranth Bhandar
Publication Year1935
Total Pages898
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size96 MB
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