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________________ जैन-दर्शन " ततश्चेश्वरकर्तृत्ववादोऽयं युज्यते परम् । सम्यन्यायाविरोधेन यथाऽऽहुः शुद्धबुद्धयः ॥" "ईश्वरः परमात्मैव तदुक्तव्रतसेवनात् । यतो मुक्तिस्ततस्तस्याः कर्ता स्याद् गुणमावतः ॥" " तदनासेवनादेव यत्संसारोऽपि तत्त्वतः । तेन तस्यापि कर्तृत्वं कल्प्यमानं न दुष्यति ॥" मावार्थ-ईश्वरकर्तृत्वका मत इस तरहकी युक्तिसे घटित भी किया जा सकता है कि-ईश्वर-परमात्माके बताये हुए मार्गका सेवन करनेसे मुक्ति प्राप्त होती है । इस लिए, उपचारसे यह कहा जा सकता है कि, मुक्तिका देनेवाला ईश्वर है। उपचारसे यह भी कहा जा सकता है कि, ईश्वर-दर्शित मार्गका सेवन न करनेसे जीवको संसारमें भटकना पड़ता है। यह ईश्वरोपदेश नहीं माननेका दंड है। जिनको इस वाक्य पर विश्वास हो गया है कि-ईश्वर जगत्कर्ता है; उनके लिए उक्त प्रकार की कल्पना की गई है। यह बात "कर्ताऽयमिति तद्वाक्ये यतः केषाश्चिदादरः। अतस्तदानुगुण्येन तस्य कर्तृत्वदेशना" ॥ इस श्लोकसे स्पष्ट हो जाती है । दूसरी तरहसे विना उपचारके मी ईश्वर जगत्कर्ता बताया गया है। “परमैश्वर्ययुक्तत्वादू मत आत्मैव वेश्वरः । स च कर्तेति निर्दोषः कर्तृवादो व्यवस्थितः ॥" वास्तविक रीत्या तो आत्मा ही ईश्वर है। क्योंकि प्रत्येक आत्मामें ईश्वर-शक्ति मौजूद है । आत्मारूपी ईश्वर सब तरहकी Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034871
Book TitleJain Ratna Khand 01 ya Choubis Tirthankar Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKrushnalal Varma
PublisherGranth Bhandar
Publication Year1935
Total Pages898
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size96 MB
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