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जैन-दर्शन
अपने चचा और मामाकी अपेक्षा भतीजा और भानना होता है । प्रत्येक मनुष्य जानता है कि इस प्रकार परस्पर विरुद्ध दिखाई देनेवाली बातें भी भिन्न भिन्न अपेक्षाओंसे, एक ही मनुष्यमें स्थित रहती हैं । इसी तरह नित्यत्व आदि परस्पर विरोधी धर्म मी एक ही घट भिन्न भिन्न अपेक्षाओंसे क्यों नहीं माने जा सकते हैं ? ___पहिले इस बातका विचार करना चाहिए कि 'घट' क्या पदार्थ है ? हम देखते हैं कि एक ही मिट्टीमेंसे घड़ा, फँडा, सिकोरा आदि पदार्थ बनते हैं। घडा फोड़ दो और उसी मिट्टीसे बने हुए कँडेको दिखाओ । कोई उसको घड़ा नहीं कहेगा । क्यों ? मिट्टी तो वही है ? कारण यह है कि उसकी सूरत बदल गई । अब वह घड़ा नहीं कहा जा सकता है । इससे सिद्ध होता है कि 'घडा' मिट्टीका एक आकार विशेष है। मगर यह बात ध्यानमें रखनी चाहिए कि, आकार विशेष मिट्टीसे सर्वथा भिन्न नहीं होता है । आकारमें परिवर्तित मिट्टी ही जब 'घड़ा' 'फँडा' आदि नामोंसे व्यवहृत होती है, तब यह कैसे माना जा सकता है कि घडेका आकार और मिट्टी सर्वथा भिन्न हैं ! इससे यह स्पष्ट हो जाता है कि घड़ेका आकार और मिट्टी ये दोनों घड़ेके स्वरूप हैं । अब यह विचारना चाहिए कि उभय स्वरूपोंमें विनाशी स्वरूप कौनसा है और ध्रुव कौनसा ! यह प्रत्यक्ष दिखाई देता है कि घड़ेका आकार-स्वरूप विनाशी है । क्योंकि घड़ा फूट जाता है । घड़ेका दूसरा स्वरूप जो मिट्टी है, वह अविनाशी है । क्योंकि मिट्टीके कई पदार्थ बनते हैं,
और टूट जाते हैं, परन्तु मिट्टी तो वही रहती है । ये बातें अनुभव सिद्ध हैं।
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