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________________ २४ श्री महावीर स्वामी-चरित ४२३ खड़ी कर दी जायगी । वह अपना प्रभाव दिखलानेके लिए मुनियोंके-जो गोचरी जाते हुए उसके पाससे निकलेंगे-अपना सींग अड़ा देगी। इसको साधु भविष्यमें अति वृष्टिकी सूचना समझेंगे और वहाँसे चले जायँगे । कुछ भोजनवस्त्रके लोलुप यह कहकर वहीं रहेंगे कि कालयोगसे जो कुछ होनहार है वह जरूर होगा । होनहारको जिनेश्वर भी नहीं रोक सकते हैं । "फिर राजा कल्कि सभी धर्मोंके साधुओंसे कर लेगा। इसके बाद वह जैनसाधुओंसे भी कर माँगेगा । तब जैन साधु कहेंगे:-" हे राजन् ! हम अकिंचन हैं और गोचरी करके खाते हैं । हमारे पास क्या है सो हम तुम्हें दें ? हमारे पास केवल धर्मलाभ है । वही हम तुमको देते हैं। पुराणोंमें लिखा है कि, जो राजा ब्रह्मनिष्ठ तपस्वियोंकी रक्षा करता है उसे उनके पुण्यका छठा भाग मिलता है । इसलिए हे राजन् ! आप इस दुष्कमसे हाथ उठाइए । आपका यह दुष्कर्म देश और शहरका अकल्याण करेगा।" __" इससे कल्कि बड़ा गुस्से होगा । उसको नगरके देवता समझायँगे कि हे राजन् ! निष्परिग्रही मुनियोंको मत सताओ। ऐसे मुनियोंको 'कर' के लिए सताकर तुम अपनी मौतको पास बुलाओगे। __" इसको सुनकर कल्कि डरेगा और मुनियोंको नमस्कार कर उनसे क्षमा माँगेगा। __ " फिर शहरमें, उसके ( शहरके ) नाशकी सूचना देनेवाले बड़े बड़े भयंकर उपद्रव होंगे । सत्रह रात दिन तक बहुत मेंह Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034871
Book TitleJain Ratna Khand 01 ya Choubis Tirthankar Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKrushnalal Varma
PublisherGranth Bhandar
Publication Year1935
Total Pages898
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size96 MB
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