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________________ ४१४ mmmmmmmmmmmmm जैन-रत्न प्रयत्न करूँ जिसको प्राप्त करनेका उपदेश महावीर स्वामी राजाने वहीं अपने वस्त्राभूषण निकाल डाले और अपने हाथोंहीसे लोच भी कर डाला । देवता और मनुष्य सभी विस्मित थे । फिर दशार्णभद्रने गौतम स्वामीके पास आकर यतिलिंग धारण किया और देवाधिदेवके चरणोंमें उत्साहपूर्वक वंदना की। दशार्णभद्रका गर्वहरण करनेकी इच्छा रखनेवाला इन्द्र आकर मुनिके चरणोंमें झुका और बोला:-" महात्मन् ! मैंने आपके वैभव-गर्वको अपने वैभवसे नष्ट कर देना चाहा । वह गर्व नष्ट हुआ भी; परंतु वैभवको एकदम छोड़ देनेके आपके महान त्यागने मुझे गर्वहीन कर दिया । त्यागी महात्मन् ! मेरी भक्ति-वंदना स्वीकार कीजिए।" वैभवभोगीसे वैभवत्यागी महान होता है । दुनिया उसकी कोई समता नहीं। धन्ना और शालिभद्र दोनों महान समृद्धिवान थे । राजगृही नगरीमें रहते थे। एक बार राजा धन्ना और शालिभद्रको दीक्षा श्रेणिकको शालिभद्रकी माताने अपने यहाँ आमंत्रण दिया । राजा श्रेणिक उसके घर आये । शालिभद्र सातवें खंडमें रहते थे। उन्हें माताने जाकर कहा:- " पुत्र ! नीचे चलो । तुम्हारे स्वामी राजा आये हैं।" Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034871
Book TitleJain Ratna Khand 01 ya Choubis Tirthankar Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKrushnalal Varma
PublisherGranth Bhandar
Publication Year1935
Total Pages898
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size96 MB
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