SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 434
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ २४ श्री महावीर स्वामी - चरित विचरण करूँगा । मगर तुम खुद ही सात दिन के अंदर पित्तज्वर से पीडित होकर कालधर्मको प्राप्त करोगे ! " गोशालकको तेजोलेश्याका प्रतिघात हुआ । वह स्तब्ध हो रहा । महावीर स्वामीने अपने शिष्यों से कहा:-- “ हे आर्यो ! गोशालक जलकर राख बने हुए काष्ठकी तरह निस्तेज हो गया है । अब इससे धार्मिक प्रश्न करके इसको निरुत्तर करो । अब क्रोध करके यह तुम्हें कुछ नुकसान न पहुँचा सकेगा ।" ४०१ श्रमण निर्ग्रथोंने धार्मिक प्रतिचोदना ( गोशालकके मतसे प्रतिकूल प्रश्न ) करके गोशालकको निरुत्तर किया । संतोषकारक उत्तर देनेमें असमर्थ होकर गोशालक बहुत खीझा । उसने निर्ग्रथों को हानि पहुँचानेका बहुत प्रयत्न किया; परंतु न पहुँचा सका । इसलिए अपने बालोंको खींचता और पैर पछाड़ता हुआ हालाहला कुम्हारिनके घर चला गया । श्रावस्ती नगरीमें यह बात चारों तरफ फैल गई । लोग बातें करने लगे, – “ नगरके बाहर कोष्ठक चैत्यमें दो जिन परस्पर विवाद कर रहे हैं । एक कहते हैं ' तुम पहले मरोगे !' दूसरे कहते हैं - ' तुम पहले मरोगे !' इनमें सत्यवादी कौन है और मिथ्यावादी कौन है ? कई महावीरको सत्यवादी बताते थे और कई गोशालकको सत्यवादी कहते थे; परंतु सात दिनके बाद जब गोशालकका देहांत हुआ तब सबको विश्वास हो गया कि महावीर ही सत्यवादी हैं । * गोशालक महावीर स्वामी के पाससे निकलकर हालाहला कुम्हारिनके यहाँ आया । मद्य पीने लगा । बर्तनोंके लिए तैयार की हुई मिट्टी उठा २६ Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034871
Book TitleJain Ratna Khand 01 ya Choubis Tirthankar Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKrushnalal Varma
PublisherGranth Bhandar
Publication Year1935
Total Pages898
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size96 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy