SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 425
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ३९२ जैन-रत्न महावीर स्वामीकी पुत्री प्रियदर्शनाने भी एक हजार स्त्रियोंके जो बच्चा गर्भ में होता है उसके लिए कोई नहीं कहता कि, बच्चा पैदा हो गया । इसलिए हे मुनियो ! जो कुछ मैं कहता हूँ उसे स्वीकार करो। कारण, मेरा कहना युक्ति-संगत है । सर्वज्ञकी तरह विख्यात महावीर मिथ्या कह ही नहीं सकते ऐसा कभी मत सोचो। क्योंकि 'कभी कभी महापुरुषों में भी स्खलना-भ्रांति होती है। __ जमालीकी यह बात जिन साधुओंको युक्ति-युक्त न जान पड़ी वे जमालीको छोड़कर महावीरके पास चले गये । बाकी उन्हींके पास रहे । जमालीकी पूर्वावस्थाकी पत्नी प्रियदर्शनाने भी मोहवश जमालीके पक्षको ही स्वीकार किया। एक बार महावीर स्वामी जब चंपानगरीके पूर्णभद्र वनमें समोसरे थे तब जमाली उनके पास गये और बोले:-" हे भगवान ! आपके अनेक शिष्य छद्मस्थ ही कालधर्मको प्राप्त हो गये हैं; परंतु मैं ऐसा नहीं हूँ। मुझे भी केवलज्ञान और केवलदर्शन प्राप्त हुए हैं । इसलिए मैं भी सर्वज्ञ हूँ।" जमालीका यह कथन सुनकर गौतम स्वामीने पूछा:-"जमाली ! अगर तुम सर्वज्ञ हो तो बताओ कि यह जीव और लोक शाश्वत (अपरि वर्तनशील ) हैं या अशाश्वत ( परिवर्तनशील )" जमाली इसका कोई जवाब न दे सके । तब महावीर बोले:" तत्त्वकी दृष्टिसे जीव और लोक दोनों शाश्वत हैं । द्रव्यकी दृष्टिसे लोक शाश्वत है, मगर प्रति क्षण बदलती रहनेवाली पर्यायोंकी अपेक्षा अशाश्वत है । इसी तरह जीव द्रव्यकी दृष्टिसे शाश्वत है; परंतु देव, तिर्यंच, नरक और मनुष्य पर्यायकी दृष्टिसे अशाश्वत है।" जिस समय यह घटना हुई थी उस समय महावीरको केवलज्ञान हुए चौदह बरस हुए थे। ____ महावीरके उपदेशसे भी जमालीने जब अपने मतको न छोड़ा तब वे संघ बाहर कर दिये गये । Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034871
Book TitleJain Ratna Khand 01 ya Choubis Tirthankar Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKrushnalal Varma
PublisherGranth Bhandar
Publication Year1935
Total Pages898
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size96 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy