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________________ २४ श्री महावीर स्वामी-चरित ३५१ प्रभु जब कूर्मग्राम पहुंचे तब वहाँ एक वैशिकायन नामका तपस्वी आया हुआ था और मध्यान्ह गोशालकको तेजोलेश्या कालमें, दोनों हाथ ऊँचे कर सूर्यमंडप्राप्तिकी विधि बताई लके सामने दृष्टि स्थिर कर आतापना ले रहा था। वह दयालु और समता १-चंपा और राजगृहके बीचमें एक गोबर नामका गाँव था । उसमेंगोशंखी नामक कुन्बी रहता था। वह संतानहीन था । गोबर गाँवके पास ही एक खेटक गाँव था। लुटेरोंने उसे लूट लिया। गाँवके कई लोगोंको मार डाला । वेशका नामकी एक थोड़े ही दिनकी प्रसूता सुंदर स्त्रीको भी वे पकड़कर ले चले । बच्चेको लेकर वह जल्दी नहीं चल सकती थी, इस लिए लुटेरोंने बच्चेको रस्तेमें एक झाड़के नीचे रखवा दिया और वेशकाको चंपानगरीमें एक वेश्याके घर बेच दिया। थोड़े दिनोंमें वह एक प्रसिद्ध वेश्या हो गई। लड़केको गोशंखीने ले जाकर बच्चेकी तरह पाला। जब वह जवान हुआ तब पीकी गाड़ी भरकर चंपामें बेचनेके लिए आया । शहरमें वेश्याके घर जानेकी इच्छा हुई। उसने वेशकाके यहाँ जाना स्थिर किया। रातको जब वह चला तब रास्तेमें उसके वैर पाखानेसे भर गये, तो भी वह वापिस न फिरा। आगे उसने एक गाय व बछड़ेको खड़ा देखा । ये उसके कुल देवता थे जो उसे अधर्मसे बचानेके लिए आये थे । जवानने पैरका पाखाना बछड़ेके पौंछा । बछड़ा बोला:-" माता! यह अधर्मी मेरे शरीरपर विष्टा पौंछ रहा है।" गायने जवाब दियाः-“ यह महान अधर्मी अपनी माँके साथ भोग करने जा रहा है।" युवकको अचरज हुआ। उसने वेश्याको जाकर उसका असली हाल पूछा । वेश्याने बताया। फिर उसने आकर कुन्बीको पूछा । कुन्बीने भी उसे सही सही बातें बताई। इससे उसका मन उदास हो गया और वह तप करने निकल गया। फिरता फिरता वह उस दिन कूर्मग्राममें आया था। उसकी माताका नाम वेशिका था इसीसे वह वैशिकायनके नामसे प्रसिद्ध हुआ। भगवतीसूत्र, विशेषावश्यक और कल्प सूत्र में इसका नाम वेश्यायन लिखा है। Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034871
Book TitleJain Ratna Khand 01 ya Choubis Tirthankar Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKrushnalal Varma
PublisherGranth Bhandar
Publication Year1935
Total Pages898
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size96 MB
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