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________________ २४ श्री महावीर स्वामी-चरित ३४९ विहार करते हुए प्रभु राजगृहमें पहुँचे और वि० सं० ५०६ (ई. स. ५६३ ) पूर्वका आठवाँ राजगृहमें आठवाँ चौमासा चौमासा चौमासी तप कर __वहीं बिताया। विहार करते हुए प्रभु म्लेच्छ देशोंमें आये और वि० सं० __५०५ (इ. स. ५६२) पूर्वका म्लेच्छ देशोंमे नवाँ चौमासा नवाँ चौमासा वज्रभूमि, शुद्धभूमि और लाट वगैरा देशोंमें बिताया । यहाँ प्रभुको रहने के लिए स्थान भी न मिला, इसलिए कहीं खंडहरमें और कहीं झाड़ तले रहकर वह चौमासा पूरा किया । इस चौमासेमें दुष्ट प्रकृति म्लेच्छ लोगोंने महीवीरको बहुत तकलीफ दी। म्लेच्छ देशसे विहारकर महावीर सिद्धार्थपुर आये और सिद्धार्थपुरसे कूर्मग्रामको चले । गोशालकका परिवर्तवाद गाँवसे थोड़ी दूर रस्तेमें एक तिलका पौदा था । गोशालकने पूछा:"स्वामी! यह तिलका पौदा फलेगा या नहीं?" प्रभुने उत्तर आगे चलते हुए गवाले मिले। उनसे पूछा:-“हे म्लेच्छो ! हे बद शकलो! बताओ यह रस्ता कहाँ जाता है ?" उन्होंने कहाः-" मुसाफिर बे फायदा गालियाँ क्यों देता है ?" गोशालक बोला:-" मैंने तो सच्ची बात कही है। क्या तुम म्लेच्छ और बद शकल नहीं हो ?" इससे गवाल नाराज हुए और उन्होंने उसे बाँधकर एक झाड़ीमें डाल दिया। दूसरे मुसाफिरोंने दयाकर उसके बंधन खोले । Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034871
Book TitleJain Ratna Khand 01 ya Choubis Tirthankar Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKrushnalal Varma
PublisherGranth Bhandar
Publication Year1935
Total Pages898
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size96 MB
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