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३२० winner.........
जैन-रत्न
आया। उसने प्रभुको उपालंभकी तरह कहा:-" तुमने इस झोंपड़ीकी रक्षा क्यों न की ? तुम्हारे पिता सबकी रक्षा करते रहे, तुम एक झोंपड़ीकी भी रक्षा न कर सके ? पक्षी भी अपने घौंसलेको बचाते हैं पर तुम अपनी झोंपड़ीकी घास भी न बचा सके ? आगेसे खयाल रखना।"
कुलपति चला गया। उस बेचारेको क्या पता था कि देह तकसे जिनको मोह नहीं है वे महावीर इस झोपड़ीकी रक्षामें कब कालक्षेप करनेवाले थे ? अहिंसाके परम उपासक, ढोरोंको पेट भरनेसे वंचित कर कब उनका मन दुखानेवाले थे ?
प्रभुने सोचा, मेरे यहाँ रहनेसे तापसोंका मन दुखता है इस लिए यहाँ रहना उचित नहीं है । उसी समय प्रभुने निम्न लिखित पाँच नियम लिये
१-जहाँ अप्रीति हो वहाँ नहीं रहना । २-जहाँ रहना वहाँ खड़े हुए कायोत्सर्ग करके रहना। ३-प्रायः मौन धारण करके रहना । ४-कर-पात्रसे भोजन करना । ५-गृहस्थोंका विनय न करना । भगवान मोराक गाँवसे विहार करके अस्थिक नामक १-बर्द्धमान नामका एक गाँव था । उसके पास वेगवती नामकी नदी थी। धनदेव नामक एक सार्थवाह कहींसे माल भरके लाया। उस समय वेगवती नदीमें पूर था। सामान्य बैल मालसे भरी गाड़ी खींच कर नदी पार होनेमें असमर्थ थे । इसलिए उसने अपने एक बहुत बड़े हृष्ट पुष्ट बैलको हरेक गाड़ीके आगे जोता। इस तरह उस बैलने पाँच सौ
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