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जैन-रत्न
विराजमान हुए और इन्द्रादि देव उसे उठाकर ' ज्ञातखंड। नामके उपवनमें ले गये। ___ प्रभुने पालखीसे उतरकर वस्त्राभूषणोंका त्याग किया । इंद्रने उनके कंधेपर देवदूष्य वस्त्र डाला । प्रभुने पंच मुष्टि लोचकर सिद्धोंको नमस्कार किया और विक्रम संवत ५१३ (शक सं०६४८ ई. स. ५७० ) पूर्व मार्गशीर्ष कृष्णा दशमीके दिन चंद्र जब हस्तोत्तरा नक्षत्रमें आया था तब चारित्र ग्रहण किया । उसी समय प्रभुको मनःपर्ययज्ञान उत्पन्न हुआ।
जिस समय महावीर स्वामीन दीक्षा ग्रहण की उस समय उनकी उम्र ३० बरसकी हो चुकी थी। जब प्रभु विहार करनेके लिए चले तब रस्तेमें 'सोम'
नामका एक ब्राह्मण मिला । वह आधे देवदष्य वस्त्रका बोला:-" हे प्रभु ! आपके दानसे सारा दान जगत (मगधदेश ?) दरिद्रतासे मुक्त हो
गया है। मैं ही भाग्यहीन हूँ कि मेरी दरिद्रता अब तक न गई । प्रभो ! मेरी निर्धनता भी दूर कीजिए।
प्रभु बोले:-" हे विप्र ! मेरे पास इस समय कुछ नहीं है । देवदूष्य वस्त्र है। इसका आधा तू ले जा।" सोम ब्राह्मण! आधा देवदृष्य वस्त्र फाड़कर ले गया। ब्राह्मण जब वह कपड़ा तूननेवालेके पास ले गया तब उसने कहा:-" हे ब्राम्हण ! अगर तू इसका आधा भाग और ले आवेगा तो इसकी कीमत एक लाख दीनार ( सोनेका सिका) मिलेगी।"
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