________________
३१२
जैन-रत्न
जानी और उसके कंधेपर जोरसे एक घुसा मारा। वह दुःखसे चिल्लाकर छोटे लड़कोंसा हो गया। उसने प्रभुको कंधेसे उतारा और अपने देवरूपसे प्रभुको नमस्कार किया । फिर वह अपने स्थानपर चला गया। जब वे आठ बरसके हुए तब पाठशालामें भेजे गये । उस
समय इन्द्रका आसन काँपा। उसने अध्ययन अवधिज्ञानसे प्रभुको पाठशाला भेजनेकी
बात जानी । वह एक ब्राह्मणका रूप धरकर आया और उसने उपाध्यायसे कुछ प्रश्न पूछे । उपाध्याय जवाब न दे सका तब प्रभने उसके प्रश्नोंके उत्तर दिये । यह देखकर सभी लोगोंको अचरज हुआ । फिर ब्राह्मणके रूपमें आये हुए इन्द्रने कहाः-" हे उपाध्याय ! महावीर सामान्य बालक नहीं हैं। ये तो पूर्वोपार्जित पुण्यके कारण महान ज्ञानवान हैं।"
उपाध्यायने भी महावीर स्वामीसे शब्द-व्युत्पत्ति आदि व्याकरण संबंधी अनेक प्रश्न पूछे । उसे उन सबका योग्य उत्तर मिला । इससे उसको बहुत संतोष हुआ और उसने प्रभुके उत्तरोंको-जो उन्होंने इन्द्रको और उसको दिये थे-संग्रहकर, जगतमें जिनेन्द्र-व्याकरणके रूपमें प्रसिद्ध किया। युवा होनेपर वर्धमान स्वामीका व्याह राजा समरवीरकी
पुत्री यशोदादेवीके साथ हुआ। वर्द्धमान ब्याह और संतान स्वामीकी इच्छा शादी करनेकी न थी,
परंतु माता पिताकी प्रसन्नताके लिए और १ दिगंबर सम्प्रदायमें मान्यता है कि महावीर स्वामीका ब्याह नहीं हुआ था।
Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat
www.umaragyanbhandar.com