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________________ जैन-रत्न wwmmmmwwwd अभिषेक, भक्तिपूजनादिकी विधि समाप्त कर, इन्द्र प्रभुको वापिस त्रिशला देवीकी गोदमें सुला, प्रभु-प्रतिबिंब ले, माताकी अवस्वापनिका निद्रा हर, घरमें बत्तीस करोड़ मूल्यके रत्न, सुवर्ण, रजतादिकी दृष्टि करा, प्रभुको या प्रभुकी माताको कष्ट देनेका कोई उपद्रव न करे ऐसी घोषणा करा, अपने स्थानपर गया । सिद्धार्थ राजाने सवेरे ही प्रभुका जन्मोत्सव मनाया, कैदियोंको छोड़ दिया, प्रजाजनोंको-राज्यका ऋण छोड़कर अथवा खजानेसे कर्जा चुकवाकर-ऋणमुक्त किया, सब तरहके 'कर' छोड़ दिये और राज्यभरमें ऐसी व्यवस्था कर दी कि प्रजाजन दस दिनतक आनंदोत्सव करते रहें। ___ बारहवें दिन सिद्धार्थ राजाने प्रभुका नाम 'वर्द्धमान' रक्खा: कारण जबसे भगवान गर्भमें आये तबसे सिद्धार्थ राजाके राज्यमें धन-धान्यादिकी वृद्धि हुई, शत्रु परास्त हुए और सब तरफ सुख शांति बढ़ी थी। ___ जब वर्द्धमान स्वामी आठ वर्षके हुए तबकी बात है । वे अपनी उम्रके लड़कोंके साथ एक उद्यानमें देवका गव हरण किया खेल रहे थे। उस समय प्रसंगवश इन्द्रने वर्द्धमान स्वामीकी वीरता और धीरताके बखान किये । एक मिथ्यात्वी देवको मनुष्यकी वीरताके बल एक इन्द्रमें होता है ऐसे अनंतों इन्द्रोंका बल जिनेन्द्रोंकी चट्टी अंगुलीमें होता है । इसी लिए तीर्थकर 'अतुल बलधारी' कहाते हैं। x पुत्र जन्मोत्सवके समय, युवराजके अभिषेकके समय, और विजयोत्सवके समय कैदियों को छोड़नेकी और कर बंद करनेकी प्राचीन पद्धति थी । Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034871
Book TitleJain Ratna Khand 01 ya Choubis Tirthankar Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKrushnalal Varma
PublisherGranth Bhandar
Publication Year1935
Total Pages898
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size96 MB
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