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२४ श्री महावीर स्वामी-चरित
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अपने पतिसे स्वप्नोंकी बात कही। ऋषभदत्तने कहा:-" तुम्हारे गर्भसे एक महान आत्मा जन्म लेगा । वह चारों वेदोंका पारगामी और परम निष्ठावान बनेगा।" यह सुनकर वह बहुत प्रसन्न हुई।
प्रभुके गर्भ में आनेके बाद ऋषभदत्तको बहुत मान और धन मिले।
जब देवानंदाके गर्भको बयासी दिन बीते तब सौधर्म देवलोकके इंद्रका आसन काँपा। सौधर्मेन्द्रने अवधिज्ञानसे प्रभुको देवानंदाके गर्भमें आया जान, सिंहासनसे उतरकर वंदना की । फिर वह सोचने लगा,-तीर्थकर कभी तुच्छ कुलमें, दरिद्र कुलमें या भिक्षुक कुलमें उत्पन्न नहीं होते । वे हमेशा इक्ष्वाकु आदि क्षत्रिय वंशमें ही जन्मते हैं । महावीर प्रभु भिक्षुक कुलकी स्त्रीके गर्भ में आये, यह उन्हें, मरीचिके भवमें किये हुए, कुलाभिमानका फल मिला है। अब मैं उनको किसी उच्च क्षत्रिय वंशमें पहुँचानेका प्रयत्न करूँ।
इन्द्रने अपनी प्यादा सेनाके सेनापति नैगमेषी देवको बुलाया और हुक्म दिया:-" मंगधमें क्षत्रियकुंडे नामका नगर है। उसमें
१-ऋग्वेदमें इस देशका कीकट नामसे उल्लेख है । अथर्ववेदमें इसको मगध देश ही लिखा है। हेमचंद्राचार्यने अपने कोशमें दोनों नाम दिये हैं। पन्नवणा सूत्रमें आर्य दश गिनाते समय मगध सबसे पहले गिनाया गया है । इस समयका विहार प्रांत मगध देश कहा जा सकता है। इसमें जैनों
और बौद्धोंके बहुतसे तीर्थ हैं। इससे वे उसे पवित्र मानते हैं। ___२-बिहार प्रांत के बसाड पट्टीके पास बसुकुंड नामका एक गाँव है। शोधक उसीको क्षत्रियकुंड बताते हैं।
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