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________________ २४ श्री महावीर स्वामी-चरित ३०३ एक रातको गवैये गा रहे थे और त्रिपृष्ठ शय्यापर लेटा हुआ था । उसने अपने द्वारपालको हुक्म दिया, जब मुझे नींद आ जाय तब गवैयोंको छुट्टी दे देना । त्रिपृष्ठ सो गया मगर मधुर संगीतके रसिया द्वारपालने गवैयोंको छुट्टी न दी । सवेरा हुआ । त्रिपृष्ठ जागा और उसने क्रोधसे पूछा:--"अभी तक गवैये क्यों गा रहे हैं । " द्वारपालने डरते हुए जवाब दियाः-"प्रभो ! मधुर गायनके लोभसे मैंने इन्हें छुट्टी न दी।" त्रिपृष्ठको और भी अधिक गुस्सा चढ़ा और उसने शीशा गरम करवाकर उसके कानमें डलवा दिया । बिचारा द्वारपाल त्रिपृष्ठके इस क्रूर कर्मसे तड़पकर मर गया । त्रिपृष्ठने और भी ऐसे अनेक क्रूर कर्म किये थे । जिनसे उसने भयंकर असाता वेदनी कर्म बाँधा और अंतमें मरकर वह सातवें नरकमें गया । त्रिपृष्ठके भाई अचल बलभद्र वैराग्य पा, दीक्षा ले मोक्षमें गये। मरीचिका जीव नरकसे निकलकर केशरीसिंह हुआ। फिर मनुष्य तिर्यंचादिके कई भवोंमें भ्रमणकर चक्रवर्ती प्रियमित्रका भव अंतमें मनुष्य जन्म पाया। और शुभ कर्मोंका उपार्जन कर अपर विदेहमें, धनंजयकी राणी धारिणीके गर्भसे जन्मा और प्रियमित्र नाम रक्खा गया । युवा होनेपर उसने छ: खंड पृथ्वीकी साधनाकी और देवताओंने तथा राजाओंने बारह बरस तक उत्सव कर उसे चक्रवर्तीपदसे सुशोभित किया। Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034871
Book TitleJain Ratna Khand 01 ya Choubis Tirthankar Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKrushnalal Varma
PublisherGranth Bhandar
Publication Year1935
Total Pages898
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size96 MB
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