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________________ २३ श्री पार्श्वनाथ-चरित २८५ श्रावण शुक्ला ८ मीके दिन विशाखा नशत्रमें वे मोक्ष गये। इन्द्रादि देवोंने निर्वाणकल्याणक किया। उनकी कुल आयु १०० बरसकी थी । उसमेंसे वे ३० बरस गृहस्थ पर्यायमें और ७० बरस साधु पर्यायमें रहे । श्रीनेमीनाथके निर्वाण पानेके बाद ८६ हजार ७ सौ ५० बरस बीते तब श्रीपार्श्वनाथ मोक्षमें गये । इनका शरीर प्रमाण ९ हाथका था। भगवान महावीर - enco-- कृतापराधेऽपि जने, कृपामंथरतारयोः । ईषद्वाष्पाईयोर्भद्रं, श्रीवीरजिननेत्रयोः॥ भावार्थ-जिन आँखोंमें दया मूचित करनेवाली पुतलियाँ हैं और जो आँखें दयाके कारणसे आँसुओंसे भीग जाती हैं उन, भगवान महावीरकी, आँखोंका कल्याण हो । ___x इस श्लोकके संबंधमें एक ऐसी कथा प्रसिद्ध है कि 'संगम' नामके किसी देवताने महावीर स्वामीपर छः महीने तक उपसर्ग किये थे तो भी भगवान स्थिर रहे थे। उनकी दृढता देखकर वह बोला:-“हे देव ! हे आर्य! आप अब स्वेच्छा पूर्वक भिक्षाके लिए जाइए । मैं आपको तकलीफ न दूंगा।" भगवान बोले-"मैं तो स्वेच्छा पूर्वक ही भिक्षाके लिए जाता हूँ। किसीके कहनसे नहीं जाता।" 'संगम' देव अपने देवलोकको चला । उसे जाते देख, प्रभुकी आँखोंमें यह सोचकर आँसू आ गये कि बिचारे देवने मुझपर उपसर्ग कर बुरे कर्म बाँधे हैं और उनका फल दुःख इसे भोगना पड़ेगा। Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034871
Book TitleJain Ratna Khand 01 ya Choubis Tirthankar Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKrushnalal Varma
PublisherGranth Bhandar
Publication Year1935
Total Pages898
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size96 MB
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