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________________ जैन - रत्न कमठ के जीवने - जो मेघमाली देव हुआ था - अवधिज्ञान से पार्श्वनाथको, जंगलमें जान, अपने पूर्व भवका वैर यादकर, दुःख देना स्थिर किया । उसने शेर, चीते, हाथी, बिच्छू, साँप वगैरा अनेक भयंकर प्राणी, अपनी देवमायासे पैदा किये । वे सभी गर्जन, तर्जन, चीत्कार, फुत्कार आदिसे प्रभुको डराने लगे; परन्तु पर्वत के समान स्थिर प्रभु तनिक भी चलित न हुए । इससे सभी अदृश्य हो गये । जब इन प्राणियोंसे प्रभु न डरे तो मेघमालीने भयंकर मेघ पैदा किये । आकाशमें कालजिह्वा के समान भयानक बिजली चमकने लगी, यह ब्रह्मांडको फोड़ देगी ऐसी भीति उप्तन्न करनेवाली मेघोंकी गर्जना होने लगी और ऐसा घोर अंधकार हुआ कि आँखकी रोशनी कोई चीज देखनेमें असमर्थ थी । ऐसा मालूम होता था कि पृथ्वी और आकाश दोनों एक हो गये हैं । -२८४ अब मूसलधार पानी बरसने लगा । बड़े बड़े ओले गिरने लगे । जंगलके पशु पक्षी व्याकुल जलधारामें बह बहकर जाने लगे । पानी प्रभुके घुटने तक आया, कमरतक आया, छातीतक आया । और होते होते नासिकातक पहुँच गया । वह वक्त करीब था कि प्रमुका शरीर सारा पानीमें डूब जाता और श्वासोश्वास बंद हो जाता, उसी समय सर्पके जीवको - जो धरणेंद्र हुआ थायह बात मालूम हुई । वह तरत अपनी राणियों सहित दौड़ पड़ा । उसकी गति ऐसी मालूम होती थी मानो वह मनसे भी जल्दी दौड़ जायगा । उसने प्रभुके पास पहुँचते ही एक सोनेका कमल बनाया, Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034871
Book TitleJain Ratna Khand 01 ya Choubis Tirthankar Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKrushnalal Varma
PublisherGranth Bhandar
Publication Year1935
Total Pages898
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size96 MB
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