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________________ २३ श्री पार्श्वनाथ-चरित २७५ ___ जंबूद्वीपके भरतक्षेत्रमें वाराणसी (बनारस ) नामका शहर है। उसमें अश्वसेन नामके राजा राज्य १० दसवाँ भव (पार्श्व- करते थे । उनकी रानी वामादेवी थीं। नाथ तीर्थकर एक रातमें वामादेवीको तीर्थकरके जन्मकी सूचना देनेवाले चौदह महास्वप्न आये । मरुभूतिका जीव महापद्म नामके देवलोकसे चयकर, चैत्र कृष्णा चतुर्थीके दिन विशाखा नक्षत्रमें वामादेवीके गर्भमें आया । इन्द्रादि देवोंने गर्भकल्याणक मनाया। गर्भकाल पूरा होनेपर पोस वदि १० के दिन अनुराधा नक्षत्रमें वामादेवीने सर्पलक्षणवाले पुत्रको जन्म दिया। इन्द्रादि देवोंने जन्मकल्याणक महोत्सव किया । ___ अश्वसेन राजाको पुत्रजन्मके समाचार मिले । उन्होंने लाखों लुटा दिये, कैदी छोड़ दिये और जिसने जो माँगा उसको वही दिया । एक बार जब बालक गर्भ में था तब वामादेवी सो रही थीं, और उनके पाससे एक भयंकर सर्प किसीको कष्ट पहुँचाये बिना फुत्कार करता हुआ निकल गया था, इसलिए मातापिताने पुत्रका नाम पाश्वे रक्खा । क्रमशः वे जवान हुए । सब तरहकी विद्याएँ सीखे और आनंदसे दिन बिताने लगे। __ एक दिन राजा अश्वसेन राजसभामें बैठे थे, उसी समय उन्हें किसी बाहरी राजदूतके आनेकी सूचना मिली । राजाने उसको अंदर बुलाया और उचित आसन देकर पूछा:-" तुम कौन हो और यहाँ किसलिए आये हो ?" Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034871
Book TitleJain Ratna Khand 01 ya Choubis Tirthankar Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKrushnalal Varma
PublisherGranth Bhandar
Publication Year1935
Total Pages898
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size96 MB
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