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________________ २३ श्री पार्श्वनाथ-चरित २६९ः mmmmmmmrrrrrrrrrrrrr.m..................... ८ आठवाँ भव राजा राज्य करता था। उसकी सुदर्शना ( सुवर्णबाहु ) नामकी रानीके गर्भसे, वज्रनाभका जीव देवलोकसे चयकर उत्पन्न हुआ । उसका नाम सुवर्णबाहु रक्खा गया। ___ जब सुवर्णबाहु जवान हुए तब उनके पिता कुलिशबाहुने उन्हें राज्यगद्दीपर बिठाकर, दीक्षा ले ली। ___ एक दिन सुवर्णबाहु घोड़ेपर सवार होकर फिरने निकला। घोड़ा बेकाबू हो गया और राजाको एक वनमें ले गया । उसके साथी सब छूट गये । एक सरोवरके पास जाकर घोड़ा खड़ा हो गया । सुवर्णबाहु थक गया था । घोड़ेसे उतर पड़ा । उसने सरोवरसे निर्मल जल पिया, घोड़ेको पिलाया, और तब घोड़ेको एक वृक्षसे बाँधकर पासके बागकी शोभा देखने लगा। उस बागमें एक तपस्वी रहते थे। उन्होंने हिरणों और खरगोशोंके बच्चे पाल रक्खे थे । वे इधर उधर किलोले कर रहे थे । राजाको देखकर झोंपड़ीकी तरफ दौड़ गये । आश्रमके अंदर सुंदर पुष्पोंके पौदे थे । उनमें यौवनोन्मुखी कुछ कन्याएँ जलसिंचन कर रही थीं। उन कन्याओंमें एक बहुत ही सुंदरी थी। फिरते हुए सुवर्णबाहुकी नजर उसपर अटक गई । वह एक वृक्षकी ओटमें छिपकर उस रूपसुधाका पान करने लगा और सोचने लगा,-यह अमृतका सरोत यहाँ कहाँसे आया? यह तापसकन्या तो नहीं हो सकती । यह कोई स्वर्गकी अप्सरा है या नागकन्या है ? उसी समय एक भँवरा गूंजता हुआ आया और उस बालाके. Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034871
Book TitleJain Ratna Khand 01 ya Choubis Tirthankar Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKrushnalal Varma
PublisherGranth Bhandar
Publication Year1935
Total Pages898
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size96 MB
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