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जैन-रत्न ~~~~~mmmmwwwmmmmmarrammmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmm
और वीर हुआ। विमलबोधका जीव भी चयकर श्रीषेण राजाके मंत्री गुणनिधिके घर उत्पन्न हुआ । उसका नाम मतिप्रभ रखा गया । शंख और मतिप्रभकी आपसमें बहुत मित्रता हो गई। __ एक बार राजा श्रीषेणके राजमें समरकेतु नामका डाकू लोगोंको लूटने और सताने लगा । प्रजा पुकार करने आई। राजा उसको दंड देनेके लिए जानेकी तैयारी करने लगा। कुमार शंखने पिताको आग्रहपूर्वक रोका और आप उसको दंड देने गया।
डाकूको परास्त किया। वह कुमारकी शरणमें आया। कुमारने उसका सारा धन उन प्रजाजनोंको दिला दिया जिनको उसने लूटा था। फिर डाकूको माफ कर उसे अपनी राजधानीमें ले चला। __ रस्तेमें शंखका पड़ाव था । वहाँ रात्रिमें उसने किसी स्त्रीका करुण रुदन सुना । वह खड्ग लेकर उधर चला । रोती हुई स्त्रीके पास पहुँचकर उससे रोनेका कारण पूछा । स्त्राने उत्तर दिया:-" अनंगदेशमें जितारी नामके राजाकी कन्या यशोमती है । उसे श्रीषेणके पुत्र शंखपर प्रेम हो गया। जितारीने कन्याकी इच्छाके अनुसार उसकी सगाई कर दी। विद्याधरपति मणिशेखरने जितारीसे यशोमतीको माँगा । राजाने इन्कार किया। तब विद्याधर अपने विद्याबलसे उसको हरकर ले चला। मैं भी कन्याके लिपट रही । इसलिए वह दुष्ट मुझको इस जंगल में डालकर चला गया। यही कारण है कि मैं रो रही हूँ।"
शंखकुमार उस धायको अपने पडावमें जानेकी आज्ञा कर यशोमतीको ढूँढने निकला। एक पर्वतपर उसने यशोमतीके साथ
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