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जैन-रत्न mmmmmmmmmmmmmmmmmm.wwwwwwwwwwwwwimmmmmmmmmmmmm
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किसीको कहे बगैर चुप चाप चल पड़ा । रस्तेमें चलते हुए उसने सुना,-" हाय! पृथ्वी क्या आज पुरुषविहीन हो गई है ? अरे! कोई मुझे इस दुष्टसे बचाओ!" अपराजित चौंक पड़ा । उसने घोड़ेको आवाजकी तरफ घुमा दिया । जहाँसे आवाज आई थी वहाँ दोनों मित्र पहुँचे । उन्होंने देखा कि अमिकुंडके पास एक पुरुष एक स्त्रीकी चोटी एक हाथसे पकड़े और दूसरे हाथसे तलवार उठाये उसे मारनेकी तैयारीमें है।"
अपराजितने ललकारा:-" नामर्द ! औरतोंपर तलवार उठाता है ? अगर कुछ दम हो तो पुरुषोंके साथ दो दो हाथकर।" वह पुरुष स्त्रीको छोड़कर अपराजितपर झपटा । अपराजितने उसका वार खाली दिया। दोनों थोड़ी देर तक असियुद्ध करते रहे । उसकी तलवार टूट गई, तो अपराजितने भी अपनी तलवार डाल दी और दोनों बाहुयुद्ध करने लगे । अपराजितसे अपनेको हारता देख उस विद्याधरने मायासे अपराजितको नागपाशमें बाँध लिया । पूर्व पुण्यसे बली बने हुए अपराजितने पाशको तोड़ डाले और खङ्ग उठाकर उसपर आघात किया।वह जख्मी होकर गिरा और बेहोश हो गया। विमलबोध और अपराजितने उपचार करके उसको होश कराया। जब उसे होश आया तब अपराजित बोला:-" और भी लड़नेकी इच्छा हो तो, मैं तैयार हूँ।" वह बोला:-" मैं पूरी तरहसे हार गया हूँ। आप मेरी थैलीमें दवा है, वह घिसकर मेरे घावपर लगा दीजिए ताके मेरे घाव भर जायँ ।" अपरा. जितने औषध लगाई और वह अच्छा हो गया । Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com